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वीर्यवान् होकर उस बैलने बांई धुरा में जुड़कर तमाम गाड़ियां निकाल दी । उस परिश्रम से उस बैल की सांधायें टूट गई और वह अशक्त हो गया । उसे अशक्त समझ कर धनदेव व्यापारी ने वर्धमान ग्राम में जाकर ग्राम के | मुखियों को उसके लिए घास पानी के वास्ते द्रव्य देकर उसे वहां ही छोड़ दिया । परन्तु गांव के उन आगे वालों ने उस बैल की बिलकुल सारसंभाल न की और वह भूख प्यास से पीडित हो शुभ अध्यवसाय से मरकर व्यन्तरजाति का देव हो गया । पूर्वभव का वृत्तान्त यादकर उसने क्रोध से गांव में मारी फैलाकर अनेक मनुष्यों को मार डाला । कितनों का अग्नि संस्कार किया गया ? कितनेक यों ही मुरदे पडे रहने से उनकी हड्डियों के समूह से उस गांव का अस्थिक ग्राम नाम पड़ गया। शेष बचे हुए लोगों ने उसकी आराधना की उससे प्रत्यक्ष होकर उसने कहने से उसका मंदिर और मूर्ति बनवाई । और डर के मारे लोग उसकी पूजा करने लगे । प्रभु पक्ष को प्रतिबोध करने के लिए उसके चैत्य में पधारें । लोगों ने कहा कि-इसके चैत्य में जो रात को रहता है उसे यह मार डालता है । इस तरह लोगों के निवारण करने पर भी प्रभु रात को वहां ही रहे । उसने प्रभु को डराने के लिए पृथ्वी फट जाय ऐसा अट्टहास्य किया । फिर हाथी और सर्प का रूप धारण कर दुःसह उपसर्ग किया । तथापि प्रभु जरा
भी क्षोभित न हुए । यह देख उसने दूसरे के प्राण जायें ऐसी प्रभु के मस्तक में, कान में, नासिका में, नेत्रों में, पीठ ih में नखों आदि सुकुमार स्थानों में घोर वेदना शुरू की । ऐसा करने से भी प्रभु को निष्पकप देख कर बोध को
प्राप्त हुआ। उसी समय सिद्धार्थ व्यन्तर देव वहां आकर कहने लगा -हे निर्भागी दुष्ट शूलपाणि ! तुने यह क्या
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