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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org %後 श्री कल्पसूत्र हिन्दी छट्टा व्याख्यान अनुवाद 117111 5वेत्ता ! तूं खेद न कर, तेरा शास्त्र सत्य ही है । इन लक्षणों से ये प्रभु तीन जगत् के पूजनीय और वन्दनीय है, ये सुरासुरों के स्वामी और सर्व प्रकार की संपदाओं के आश्रयभूत तीर्थकर होंगे । इनका शरीर पसीने के मैल से रहित है, श्वासोश्वास सुगन्धवाला है, रूधिर और मांस गाय के दूध समान सुफेद । इत्यादि इनके बाह्य और & अभ्यन्तर सुलक्षणों को कौन गिन सकता है ? इत्यादि कह कर उसे मणि, सुवर्णादि से समृद्धिवान् करके इंद्र अपने स्थान पर चला गया । यह सामुद्रिक शास्त्रवेत्ता भी हर्षित हो अपने देश गया । श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु बारह वर्ष से कुछ अधिक समय तक काया को नित्य बोसरा कर एवं शरीर में पर से ममता को तज कर रहते हैं । उन्हें जो कोई उपसर्ग होता है उसे निश्चलता से सहते हैं । अर्थात् देवकृत, मनुष्यकृत, भोगप्रार्थनारूप अनुकूल उपसर्ग, ताड़नादि प्रतिकूल उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं क्रोध Tऔर दीनता रहित सहते हैं । प्रभु ने जो देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी अनुकूल तथा प्रतिकूल उपसर्ग सहन ॐ किये सो कहते हैं। शूलपाणि का उपसर्ग तथा भगवान् के दश स्वप्न प्रभु ने प्रथम चातुर्मास के सिर्फ 15 दिन मोराक नामक सन्निवेश में व्यतीत कर शेष साढ़े तीन महिने अस्थिक ग्राम में व्यतीत किये । वहां शूलपाणि यक्ष के चैत्य में रहे । वह यक्ष पूर्वभव में धनदेव नामक व्यापारी का बैल था - है । उस व्यापारी की नदी उतरते समय पांच सौ बैलगाड़ियां कीचड़ में फस गई । तब उस बैल से उल्लसित 獎警%使 For Private and Personal Use Only 獲
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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