________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
पांचवा
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
116011
ॐ देवने सात ताल वृक्ष समान ऊंचा शरीर बना लिया । भगवान ने ज्ञान से उसका स्वरूप जान कर उसकी पीठपर वज के
समान कठिन मुष्टिप्रहार किया, उस देव ने मुष्टिप्रहार की वेदना से पीड़ित हो मच्छर के समान संकुचित शरीर बना लिया | और उसने इंद्र का वचन सत्य मान कर अपना स्वरूप प्रकट किया तथा सब वृत्तान्त सुनाकर प्रभु से अपने अपराध की
बारंबार क्षमा मांगी । देव अपने स्थान पर चला गया । इंद्र ने संतुष्ट होकर प्रभु का 'वीर' नाम रक्खा । यह आमल क्रीडा * का वृत्तान्त समझना चाहिये ।
प्रभु का पाठशाला में जाना अब प्रभु के माता पिता उन्हें आठ वर्ष का हुआ जान कर अति मोह के कारण उन्हें आभूषणादि पहनाकर पाठशाला में ले गये । उस समय माता पिता ने लग्नस्थिति पूर्वक अति हर्षित होकर बहुत धन व्यय कर के बड़ा मूल्यवान महोत्सव किया । # हाथी, घोड़ों के समूह से, मनोहर बाजुबन्ध तथा हारों के समूह से, तथा सुवर्ण घड़ित मुद्रिकायें, कंकण, कुंडल आदि आभूषणों
से, तथा अति मनोहर पंचवर्णीय रेशमी वस्त्रों से स्वजनादि राजकीय भनुष्यों का उन्होंने भक्तिपूर्वक आदर सत्कार किया । पंडित के लिए अनेक प्रकार के वस्त्र, आभूषणादि एवं विद्यार्थिओं के लिए सुपारी, सिंगोडे, खजूर, शक्कर, खांड, चारोली, किसमिस आदि खाने की वस्तुयें भी उन्होंने साथ लेली । तथा सुवर्ण, चांदी और रनों के मिश्रण से बनाये हुए पुस्तकों के उपकरण, एवं कलम, दवात, तख्ती को भी साथ ले लिया, सरस्वती की पूजा के लिए मनोहर तथा बहुत से रत्नों से
050 0000)
For Private and Personal Use Only