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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद
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होते हैं, उन्हें प्रभुने क्षमाशीलता से सहन किया । भद्रादिक तथा एक रात्रिक आदि प्रतिमाओं अभिग्रहों को पालन करनेवाले, तीन ज्ञान से मनोहर बुद्धिशाली जिन्होंने रति अरति को सहन किया है: अर्थात् जिसे अनुकूल और प्रतिकूल संयोगों में हर्ष और शोक नहीं है, जो रागद्वेष रहित होने से गुणों का भाजनरूप है ऐसा वृद्ध आचार्यों का मत है । पराक्रमसंपन्न होने से अर्थात् पूर्वोक्त गुणों के कारण देवो ने प्रभु का "श्रमण भगवान् महावीर" नाम रक्खा था । देवोंने ऐसा नाम क्यों रक्खा इसके लिए वृद्ध संप्रदाय का मत है।
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इस प्रकार सुरासुर नरेश्वरों द्वारा जिसका जन्मोत्सव किया गया है ऐसे वीर भगवन्त द्वितीया के चंद्र समान या कल्पवृक्ष के अंकुर के समान वृद्धि को प्राप्त होते हुए अनुक्रम से ऐसे हुए चंद्र के समान मुखवाले, ऐरावण हाथी के समान गतिवाले, लाल होंठोंवाले, दांतों की सफेद पंक्तियुक्त, काले केशों से युक्त, कमल के समान कोमल हाथों सहित, सुगंधयुक्त श्वासोश्वास वाले और कान्ति से विकसित हुए। वे मति श्रुत और अवधिज्ञान सहित थे, उन्हें पूर्वभव का भी स्मरण था, वे रोग रहित थे, मति, कान्ति, धीरज आदि अपने गुणों के द्वारा संसार वासियों से अधिक थे और जगत में तिलक के समान थे ।
आमल
क्रीड़ा
एक दिन वीरकुमार कौतुक के न होने पर भी समान उम्रवाले कुमारों के आग्रह से उनके साथ आमल क्रीडा करने के लिए नगर के बाहर गये। वहां पर वे सब कुमार वृक्ष पर चढ़ने आदि की क्रिया से क्रीड़ा कर
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पांचवा
व्याख्यान
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