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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
पांचवा
व्याख्यान
अनुवाद
||53||
सामने खड़ी रहीं। 1. अलम्बुसा
2. मितकेशी 3. पुण्डरीका 4. वारुणी 5. हासा 6. सर्वप्रभा 7. श्री:
8. हीः इन आठ दिक्कुमारियां उत्तर दिशा के रूचक पर्वत से आकर चामर ढालती हैं। 1. चित्रा 2. चित्रकनका 3. शतेरा
4. वसुदामिनी ये चार दिक्कुमारियां हाथों में दीपक धारण कर भगवन्त के आगे खड़ी रहीं। 1. रूपा 2. रूपासिका 3. सुरूपा
4. रूपकावती ये चार दिक्कुमारीयां रूचक द्वीप के मध्यम दिशा से आकर चार अंगुल बाकी रख शेष नाल को छेद कर पास र में खड्डा खोद पृथ्वी के अन्दर रखती हैं और ऊपर रत्नमय चबुतरा बना कर उसके ऊपर दूबधास बोती हैं । । तत्पश्चात् जन्मगृह से पूर्व, दक्षिण और उत्तर दिशा में तीन केले के घर बनाती हैं | उन में से दक्षिण दिशा के केले के घर में भगवान् और भगवान् की माता को ले जाती हैं और वहां उन्हें तैलादि का मर्दन करती हैं । फिर पूर्व तरफ से घर में स्नान करा कर वस्त्र तथा आभूषण पहनाती हैं । उत्तर दिशा के घर में दो अरणीकाष्ठ घिस कर अग्नि पैदा करती हैं । चंदन का होम कर के उन्होंने दोनों को रक्षा पोटली बांधी । फिर मणि के दो गोलों को उछालती हुई "तुम पर्वत के समान आयुष्यवाले बने रहो !" यों कह कर प्रभु और उनकी
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