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होगा ! या बच्चों सहित चूहों के बिल पानी से भर दिये होंगे ! क्या मैंने अण्डे और बच्चों सहित पक्षियों के घौंसले जमीन पर गिरा दिये होंगे ? या कोयल, तोता, मुरगे आदि के बच्चों को मैंने क्या वियोग कराया है ? अथवा क्या मैने बाल हत्या की है ? अथवा क्या मैने शौकन के बालकों पर दुष्ट विचार किया है ? या मैंने किसी बच्चों पर टुन मुन टोना किया-कराया है ? अथवा मैंने किसी के गर्भों को नष्ट या स्थंभन आदि कराया है? या इसके सम्बन्ध में मैंने मंत्र या औषधि आदि कुछ कराया है ? अथवा क्या मैने भवान्तर में बहुत दफा शील खण्डन किया है ? क्यों कि ऐसा किये बिना प्राणियों को ऐसा दुःख उपस्थित नहीं होता । इस प्रकार चिन्तातुर हुई अतः कुमलाये हुये कमल के समान मुखवाली त्रिशला रानी को देखकर सखियों ने उसका कारण पूछा तब वह त्रिशला क्षत्रियाणी आंखों में अश्रु भर कर निःश्वास सहित वचनों से कहने लगी सखियो ! मैं मंद भाग्यवाली क्या कहूं? मेरा तो जीवन ही चला गया ! सखियां बोली कि हे सखी! आपके सभी
गर्भ को कुशल हो तो मेरे लिए अकुशल ही क्या है ?
अमंगल शान्त हो परन्तु आप यह बतलाओं कि आप के गर्भ को तो कुशल है न ? त्रिशला क्षत्रियाणी बोली-सखियो ! मेरे ऐसा कह कर त्रिशला मूर्च्छा खाकर जमीन पर गिर त्रिशला को चैतन्य प्राप्त हुआ। फिर वह दैव को
पड़ी। तुरन्त ही सखियों के शीतल उपचार करने पर
ओलंभा देती हुई रूदन करने लगी। अथाग जलवाले रत्नाकर
समुद्र में छिद्रवाला घडा भर न सके तो उसमें समुद्र का
क्या दोष है ? वसन्त ऋतु प्राप्त होने पर तमाम वृक्ष पल्लवित हो जाते हैं तथापि करीर को पत्ते नहीं आते तो इसमें वसन्त
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