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कुमारसंभव
तथातितप्तं सवितुर्गभस्तिभिर्मुखं तदीयं कमल श्रियं दधौ। 5/21 इस प्रकार तप करते रहने पर भी उनका मुर्ख सूर्य की किरणों से तपकर कुम्हलाया नहीं, वरन् कमल के समान खिल उठा। अपि शयन सखीभ्यो दत्तवाचं कथंचित् प्रमथमुख विकारैह्रासयामास गूढम्। 7/95 सखियों की चुटकियों का ज्यों-त्यों उत्तर देने वाली पार्वती जी के आगे आकर, जब प्रमथ आदि गण अनेक प्रकार के मुँह बनाने लगे, तो पार्वती जी भी मन ही मन हँस दी। आननेन न तु तावदीश्वरश्चक्षुषा चिरमुमा मुखं पपौ। 8/80 पार्वती जी के उस मुख को शंकर जी ने अपने मुँह से चूमा नहीं, वरन् बहुत देर
तक अपनी आँख से ही उनकी सुन्दरता को पीते रहे। 3. वदन :-[वद्+ल्युट्] मुख।
वदनम पहरन्तीं तत्कृताक्षेपमीशः। 7/95 हाथ से आँचल खींचे जाने पर अपना मुँह छिपाने वाली। उच्छ्वसत्कमलगन्धये ददौ पार्वती वदन गन्धवाहिने। 8/19 तब खिले हुए कमल की गंध वाले पार्वती जी के मुँह की फूंक पाने के लिए वे अपना नेत्र उठाकर उनके मुंह तक पहँचा देते। मन्दरस्य कटकेषु चावसत्पार्वती वदन पद्मषट्पदः। 8/23 पार्वती जीके मुखकमल का रस लेने वाले महादेव जी वहाँ से चलकर मन्दराचल की उस ढाल पर पहुंचे। सा बभूव वशवर्तिनी द्वयोः शूलिन: सुवदना मदस्य च। 8/79 मदिरा पीने से सुन्दर मुख वाली पार्वती जी ऐसी मद में चूर होकर शंकर जी के गोद में गिरी।
आम्र
1. आम्र :-पुं० [अम्यते अम् गत्या दौ, अमितादीर्घश्चेतिरक् दीर्घश्च], आम।
अप्रतयं विधियोग निर्मितामान तेव सहकारतां ययौ। 8/78 जैसे वसन्त में ब्रह्मा की कृपा से आम का पेड़ अधिक सुगन्धित होकर सहकार बन जाता है।
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