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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 563 कुमारसंभव तथातितप्तं सवितुर्गभस्तिभिर्मुखं तदीयं कमल श्रियं दधौ। 5/21 इस प्रकार तप करते रहने पर भी उनका मुर्ख सूर्य की किरणों से तपकर कुम्हलाया नहीं, वरन् कमल के समान खिल उठा। अपि शयन सखीभ्यो दत्तवाचं कथंचित् प्रमथमुख विकारैह्रासयामास गूढम्। 7/95 सखियों की चुटकियों का ज्यों-त्यों उत्तर देने वाली पार्वती जी के आगे आकर, जब प्रमथ आदि गण अनेक प्रकार के मुँह बनाने लगे, तो पार्वती जी भी मन ही मन हँस दी। आननेन न तु तावदीश्वरश्चक्षुषा चिरमुमा मुखं पपौ। 8/80 पार्वती जी के उस मुख को शंकर जी ने अपने मुँह से चूमा नहीं, वरन् बहुत देर तक अपनी आँख से ही उनकी सुन्दरता को पीते रहे। 3. वदन :-[वद्+ल्युट्] मुख। वदनम पहरन्तीं तत्कृताक्षेपमीशः। 7/95 हाथ से आँचल खींचे जाने पर अपना मुँह छिपाने वाली। उच्छ्वसत्कमलगन्धये ददौ पार्वती वदन गन्धवाहिने। 8/19 तब खिले हुए कमल की गंध वाले पार्वती जी के मुँह की फूंक पाने के लिए वे अपना नेत्र उठाकर उनके मुंह तक पहँचा देते। मन्दरस्य कटकेषु चावसत्पार्वती वदन पद्मषट्पदः। 8/23 पार्वती जीके मुखकमल का रस लेने वाले महादेव जी वहाँ से चलकर मन्दराचल की उस ढाल पर पहुंचे। सा बभूव वशवर्तिनी द्वयोः शूलिन: सुवदना मदस्य च। 8/79 मदिरा पीने से सुन्दर मुख वाली पार्वती जी ऐसी मद में चूर होकर शंकर जी के गोद में गिरी। आम्र 1. आम्र :-पुं० [अम्यते अम् गत्या दौ, अमितादीर्घश्चेतिरक् दीर्घश्च], आम। अप्रतयं विधियोग निर्मितामान तेव सहकारतां ययौ। 8/78 जैसे वसन्त में ब्रह्मा की कृपा से आम का पेड़ अधिक सुगन्धित होकर सहकार बन जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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