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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 530 कालिदास पर्याय कोश अपाम 1. अंबु :-क्ली० [अबि शब्दे, उण्] जल। अयाचितोपस्थितमम्बु केवलं रसात्मक स्योडुपेतश्च रश्मयः। 5/22 फिर वर्षा के दिनों में वे एक तो बिना माँगे अपने आप बरसे हुए जल को पीकर और दूसरे अमृत से भरी चन्द्रमा की किरणों को पीकर रह जाती। हेमतामरसताडित प्रिया तत्कराम्बुविनिमीलते क्षणा। 8/26 वहाँ वे सोने के कमल तोड़-तोड़ कर उनसे महादेवजी को मारती और महादेव जी भी ऐसा पानी उछालते कि इनकी आँखें बन्द हो जाती। अद्रिराजतनये तपस्विनः पावनाम्बुविहिताञ्जलि क्रियाः। 8/47 हे पार्वती ! सब क्रिया जानने वाले ये तपस्वी, पवित्र जल से सूर्य को अर्घ्य देकर। 2. अंभ :-क्ली० [आप्यते, आप्+'उदके नुम्भौच' इत्यसुन ह्रस्व:] जल, नीर, वारि। अम्भ सामोघ संरोधः प्रतीप गमनादिव। 2/25 जैसे ऊँचे की ओर बहने वाले जल का बहाव धीमा पड़ जाता है। अपेक्षते प्रत्ययमुत्तमं त्वां बीजांकुरः प्रागुदयादिवाम्भः। 3/18 जैसे बीज को अंकुर बनने के लिए जल की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही यह काम भी तुम्हारी सहायता के भरोसे ही अटका हुआ था। मूर्ध्नि गंगा प्रपातेन धौत पादाम्भसा च वः। 6/57 एक तो सिर पर गंगाजी की धारा गिरने से, दूसरे आप लोगों के चरण की धोवन पा लेने से। 3. अपाम :-जल, नीर। यदमोघमपामन्तरुप्तं बीजमज त्वया। 2/5 हे ब्रह्मन् ! आपने सबसे पहले जल उत्पन्न करके उनमें ऐसा बीज बो दिया, जो कभी अकारथ नहीं जाता। 4. उदकम् :-क्ली० [उनतीति, उन्दी क्लेदने + क्विन् । 'उदकमिति' सूत्रेण साधु] जल, नीर, वारि। निनाय सात्यन्त हि मौत्किरानिलाः सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा। 5/26 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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