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कालिदास पर्याय कोश 10. पार्वती :-स्त्री० [पर्वतो हिमाचलस्तस्य तदधिष्यतृ देवस्येति भावः, अपत्यमिति।
अण्+ङीप्] दुर्गा, उमा, गौरी। तां पार्वती त्याभिजनेन नाम्ना बन्धुप्रियां बन्धुजनो जुहाव। 1/26 पर्वत से उत्पन्न होने के कारण पिता ने और कुटुम्बियों ने सबकी दुलारी उस कन्या को, पार्वती कहकर पुकारना आरम्भ कर दिया। परिणेष्यति पार्वतीं यदा तपसा तत्प्रवणीकृतो हरः।। 4/42 जब पार्वतीजी की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव जी उनके साथ विवाह कर लेंगे। निनिन्द रूपं हृदयेन पार्वती प्रियेषु सौभाग्य फला हि चारुता। 5/1 वे जी भरकर अपनी सुन्दरता को कोसने लगी, क्योंकि जो सुन्दरता अपने प्यारे को न रिझा सकी, उसका होना न होना दोनों बराबर है। तमातिथेयी बहुमानपूर्वया सपर्यया प्रत्युदियाय पार्वती। 5/31 अतिथि का सत्कार करने वाली पार्वती जी ने बड़े आदर से आगे बढ़कर उसकी पूजा की। यदुच्यते पार्वति पापवृत्तये न रूपमित्यव्यभिचारिततद्वचः। 5/36 हे पार्वती जी यह ठीक ही कहा जाता है, कि सुन्दरता पाप की ओर कभी नहीं झुकती। धर्मेणापि पदं शर्वेकारिते पार्वतीं प्रति । 6/14 शंकरजी के मन में पार्वती जी से विवाह करने की इच्छा देखकर। अत आहर्तुमिच्छामि पार्वतीमात्मजन्मने। 6/28 पुत्र उत्पन्न करने की इच्छा से मैं पार्वती जी को उसी प्रकार लाना चाहता हूँ। लीलाकमल पत्राणि गणयामास पार्वती। 6/84 पार्वती खिलौने के कमल के पत्ते, बैठी हुई गिन रही थीं। कैतवेन शयिते कुतूहलात्पार्वती प्रतिमुखं निपातितम्।। 8/3 जब कभी शिवजी सोने का बहाना करके आँख मूंद कर लेट जाते थे, तब पार्वतीजी उनकी ओर घूमकर। वीक्षितेन परिवीक्ष्य पार्वती मूर्धकम्पमयमुत्तरं ददौ। 8/6 पार्वतीजी अपनी आँखें ऊपर उठाकर और सिर घुमाकर यह जता देतीं कि मैं आपकी सब बातें मानती हूँ।
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