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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 877 2. सर - [ सृ + अच्] झील, सरोवर। सभद्रमुस्तं परिशुष्ककर्दमं सरः खनन्नायतपोत्रमण्डलैः। 1/17 अपने लंबे-लंबे थूथनों से नगरमोथे से भरे हुए बिना कीचड़ वाले तालाब (गड्ढे)को खोदता हुआ। विवस्वता तीक्ष्णतरांशुमालिनां सपङ्कतोयात्सरसोऽभितापितः। 1/18 धूप से तपे हुए ( मेंढक), गँदले जल वाले पोखरे (तालाब) से बाहर निकलनिकलकर। परस्परोत्पीडनसंहतैर्गजैः कृतं सरः सान्द्रविमर्द कर्दमम्। 1/19 हाथियों ने इकट्ठे होकर आपस में लड़-लड़कर इस ताल को कीचड़ में बदल डाला है। काशैर्मही शिशिरदीधितिना रजन्यो हंसैर्जलानि सरितां कुमुदैः सरांसि। 3/2 काँस की झाड़ियों ने धरती को, चंद्रमा ने रातों को, हंसों ने नदियों के जल को, कमलों ने तालाबों को। मन्दप्रभातपवनोद्गतवीचिमालान्युत्कण्ठयन्ति सहसा हदयं सरांसि।3/11 जिनमें प्रातः काल के धीमे-धीमे पवन से लहरें उठ रही हैं, वे ताल अचानक हृदय को मस्त बनाए डाल रहे हैं। प्रसन्नतोयानि सुशीतलानि सरांसि चेतांसि हरन्ति पुंसाम्। 4/9 जिन तालों में ठंडा निर्मल जल भरा हुआ है, उन्हें देखकर लोगों का जी खिल उठता है। सस्य 1. तरु - [तृ + उन्] वृक्ष। बहुगुणरमणीयः कामिनीचित्तहारी तरुविटपलतानां बान्धवो निर्विकारः। 2/29 बहुत से गुणों से सुहावनी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेंड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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