SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 863 ऋतुसंहार 6. विपाटल - [वि + पट् + णिच् + कलच्] लाल, लाल रंग। अन्याप्रकामसुरतश्रमखिन्नदेहो रात्रिप्रजागरविपाटलनेत्रपद्मा। 4/15 अत्यंत संभोग से थक जाने के कारण एक दूसरी स्त्री की कमल जैसी आँखें रात भर जागने से लाल हो गई हैं। वन 1. वन - [ वन् + अच्] अरण्य, जंगल। वनान्तरे तोयमिति प्रधाविता निरीक्ष्यभिन्नाञ्जन संनिभंनभः। 1/11 वे धोखे में उन जंगलों की ओर दौड़े जा रहे हैं, जहाँ के आँजन के समान नीले आकाश को ही वे पानी समझ बैठे हैं। वनानि वैन्ध्यानि हरन्ति मानसं विभूषितान्युनत पल्लवैर्दुमैः। 2/8 नई कोंपलों वाले वृक्षों से छाए हुए विंध्याचल के जंगल किसका मन नहीं लुभा लेते। वनद्विपानां नववारिदस्वनैर्मदान्वितानां ध्वनतां मुहुर्मुहुः। 2/15 नए-नए बादलों के गरजने से जब बनैले हाथी मस्त हो जाते हैं और उनके माथे से बहते हुए मद पर। कदम्बसर्जार्जुनकेतकीवनं विकम्पयंस्त्कुसुमाधिवासितः। 2/17 कदंब, सर्ज, अर्जुन, और केतकी से भरे हुए जंगल को कंपाता हुआ और उन वृक्षों के फूलों की सुगंध में बसा हुआ। आदीप्तवह्निसदृशैर्मरुताऽवधूतैः सर्वत्र किंशुकवनैः कुसुमावनगैः। 6/21 पवन के झोंके से हिलती हुई जिन पलास के वृक्षों की शाखाएँ जलती हुई आग की लपटें के समान दिखाई देती है। 3. वनस्थली - [ वन् + अच् + स्थली] जंगल, जंगल की भूमि। समाचिता सैकतिनी वनस्थली समुत्सुकत्वं प्रकरोति चेतसः। 2/9 भरा हुआ रेतीला जंगल हृदय को बरबस खींचे लिए जा रहा है। वनान्त - [वन् + अच् + अन्तः] वन्य प्रदेश, जंगल। दिनकरपरितापक्षीणतोयाः समन्ताद्विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः। 1/22 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy