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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 848 कालिदास पर्याय कोश कपोलदेशा विमलोत्पलप्रभाः सभृङ्गयूथैर्मदवारिभिश्चिताः। 2/15 जब बहते हुए मद पर भौंरे आकर लिपट जाते हैं, उस समय उन हाथियों के माथे स्वच्छ नीले कमल जैसे दिखाई देने लगते हैं। सितोत्पलाभाम्बुदचुम्बितोत्पलाः समाचिताः प्रस्रवणैः समन्ततः। 2/16 धौले कमल के समान उजले बादल जिन पहाड़ी चट्टानों को चूमते हैं, उन से बहने वाले सैकड़ों झरनों को देखकर। सोन्मादहंसमिथुनैरुपशोभितानि स्वच्छ प्रफुल्लकमलोत्पल भूषितानि। 3/11 जिनमें मस्त हंसों के जोड़े घूम रहे हैं, जिनमें स्वच्छ खिले हुए उजले और नीले कमल शोभा दे रहे हैं। पर्यन्तसंस्थित मृगीनयनोत्पलानि प्रोत्कण्ठयन्त्युपवनानि मनांसि पुंसाम्। 3/14 जिन उपवनों में कमल जैसी आँखों वाली हरिणियाँ जहाँ-तहाँ बैठी पगुरा रही हैं, उन्हें देखकर लोगों के मन हाथ से निकल जाते हैं। नीलोत्पलैर्मदकलानि विलोचनानि भ्रूविभ्रमाश्च रुचिरास्तनुभिस्तरङ्गैः। 3/17 नीले कमलों ने उनकी मदभरी आँखों को और छोटी लहरियों ने उनकी भौंहों की सुंदरता को हरा दिया है। कर्णेषु च प्रवरकाञ्चनकुण्डलेषु नीलोत्पलानि विविधानि निवेशयन्ति। 3/19 अपने जिन कानों में वे सोने के बढिया कंडल पहना करती थीं, उनमें उन्होंने अनेक प्रकार के नीले कमल लटका दिए हैं। असित नयनलक्ष्मी लक्षयित्वोत्पलेषु क्वणितकनककाञ्ची मत्तहंस स्वनेषु। 3/26 नीले कमलों में अपनी प्रियतमा की काली आँखों की सुंदरता देखते हैं, मस्त हंसों की ध्वनि में उनकी सुनहली करधनी की रुनझुन सुनते हैं। विकचकमलवक्त्रा फुल्लनीलोत्पलाक्षी विकसितनवकाशश्वेतवासो वसाना। 3/28 For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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