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मेघदूतम्
धुन्वन्कल्पदुमकिसलयान्यंशुकानीव। पू० मे० 66
कल्पद्रुम के कोमल पत्तों को महीन कपड़े की भाँति हिला देना। 2. क्षौम- [ क्षु + मन् + अण्] रेशमी कपड़ा, कपड़ा।
क्षौमं रागादनिभृकरेष्वाक्षिपत्सु प्रियेषु। उ० मे07
अपने चंचल हाथों से अपनी प्यारियों की ढीली साड़ियों को हटाने लगते हैं। 3. दुकूल - [ दु + ऊलच्, कुक्] रेशमी, वस्त्र, अत्यंत महीन वस्त्र।
तस्योत्सङ्गे प्रणयिन इव स्रस्तगंगादुकूलां। पू० मे० 67 जैसे गोद में कोई कामिनी बैठी हो और गंगाजी की धारा ऐसी लगती है मानो
उस कामिनी की सरकी हुई साड़ी हो। 4. पट - [पट् वेष्टने करणे घबर्थे कः] वस्त्र, पहनावा, कपड़ा।
कुर्वन्कामं क्षणमुखपट प्रीतिमैरावतस्य। पू० मे० 66
ऐरावत के मुंह पर थोड़ी देर कपड़े, सा छाकर उसका मन बहला देना। 5. वसन - [ वस् + ल्युट्] वस्त्र, कपड़ा, परिधान।
हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधोनितम्बम्। पू० मे0 45 अपने तट के नितंबों पर से अपने जल के वस्त्र खिसक जाने पर। उत्सङ्गे वा मलिनवसने सौम्य निक्षिप्य वीणां। उ० मे० 26 वह मैले कपड़े पहने हुए गोद में वीणा लिए मिलेगी, जैसे-तैसे वीणा को तो
पोंछ लेगी पर। 6. वास - [ वास + घञ्] कपड़े, पोशाक।
वासश्चित्रं मधु नयनयोर्विभ्रमादेश दक्षं। पू० मे० 12
रंग-बिरंगे वस्त्र नेत्रों में बाँकपन बढ़ाने वाली मदिरा। 7. वासस - [ वस् आच्छादने असि णिच्च] वस्त्र, परिधान, कपड़े।
संन्यस्ते सति हलभृतो मेचके वाससीव। पू० मे० 63 बलराम के कंधों पर पड़े हुए चटकीले काले वस्त्र के समान ऐसे मनोहर लगोगे।
विद्युत 1. तड़ित - [ ताडयति अभ्रम् - तड् + इति] बिजली।
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