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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 723 मेघदूतम् 3. षट्पद - [सो + क्विप्, पृषो० + पदः] भौरा, भ्रमर। प्रायश्चापं न वहति भयान्मन्मथः षट्पदज्यम्। उ० मे० 14 डर के मारे कामदेव अपना भौंरो की डोरीवाला धनुष वहाँ नहीं चढ़ाता। मयूख 1. पाद - [ पद् + घञ्] प्रकाश की किरण। पादानिन्दोरमृतशिशिराञ्जालमार्गप्रविष्टान्। उ० मे० 32 जालियों में से छनकर जो चंद्रमा की किरणें आ रही होंगी, वे पहले अमृत के समान ठंडी थीं, वैसे ही। 2. मयूख - [ मा + ऊख, मयादेशः] प्रकाश की किरण, रश्मि, अंशु। शष्पश्यामानन्मरकतमणीनुन्मयूख प्ररोहान्। पू० मे० 34 नई घास के समान नीले और चमकीली किरणों वाले नीलम बिछे दिखाई देंगे। 3. लेखा - [ लिख् + अ + टाप्] रेखा, किरण। ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बह। पू० मे0 48 उसके सड़े हुए पंखों से चमकीली किरणें निकल रही होंगी। मरुत 1. अनिल - [ अन + इलच्] वायु, वायु देवता। अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति। पू० मे० 21 तुम भारी हो जाओगे तो वायु तुम्हें इधर-उधर झुला नहीं सकेगा। शब्दायन्ते मधुरमनिलैः कीचकाः पूर्यमाणः। पू० मे0 60 पोले बाँसों में जब वायु भरने लगता है तब उनमें से मीठे-मीठे स्वर निकलने लगते हैं। तमुत्थाप्य स्वजलकणिका शीतलेनानिलेन। उ० मे० 40 अपने जल की फुहारों से ठंड किया हुआ वायु चलाकर जगा देना। 2. पवन - [पू + ल्युट्] हवा, वायु। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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