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मेघदूतम् 3. मन्मथ - प्रायश्चापं न वहति भयान्मन्मथः षट्पदज्यम्। उ० मे० 14
डर के मारे कामदेव अपना भौंरों की डोरी वाला धुनष वहाँ नहीं चढ़ाता।
केका
1. केका - [ के + कै + ड + टाप्, अलुक् स०] मोर, मोर की बोली।
शुक्लापाङ्गैः सजलनयनैः स्वागतीकृत्य केकाः। पू० मे० 24 जहाँ के मोर नेत्रों में आनंद के आँसू भरकर अपनी कूक से तुम्हारा स्वागत करेंगे। केकोत्कण्ठा भवनशिखिनो नित्य भास्वत्कलापी। उ० मे० 3 ।
सदा चमकीले पंखों वाले मोर ऊँचा सिर किए हुए रात-दिन बोलते रहते हैं। 2. नीलकंठ - [नील् + अच् + कंठः] मोर।
यामध्यास्ते दिवसविगमे नीलकण्ठः सुहृदः। उ० मे० 19
जिसके बीच में तुम्हारा मित्र मोर नित्य साँझ को आकर बैठ करता है। 3. मयूर - [मी + उरन्] मोर।
धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस्तं मयूरं । पू० मे० 48 वह मोर नाच उठेगा जिसके नेत्रों के कोने, शिवजी के सिर पर धरे हुए चंद्रमा
की चमक से दमकते रहते थे। 4. शिखि - [शिखा अस्त्यस्य इनि] मोर।
भवनशिखिभिर्दत्तनृत्योपहारः। पू० मे० 36 वहाँ के पालतू मोर भी नाच-नाचकर तुम्हारा स्वागत करेंगे। वक्त्रच्छायां शशिनि शिखिना बहभारेषु केशान्। उ० मे० 46 चंद्रमा में तुम्हारा मुख, मोरों के पंखों में तुम्हारे बाल देखा करता हूँ।
केश
1. अलक - [अल् + क्तुन्] धुंघराले बाल, जुल्फें, बाल।
या वः काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैर्विमाना मुक्ताजालग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम्। पू० मे० 67
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