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कालिदास पर्याय कोश
अवचितबलि पुष्पा वेदिसंमार्ग दक्षा। 1/60 प्रतिदिन पूजा के लिए फूल चुनकर बड़े अच्छे ढंग से वेदी को धो पोंछकर। विकीर्ण सप्तर्षि बलि प्रहासिभिस्तथा न गांगैः सलिलैर्दिवश्चतौ। 5/37 यों तो सप्तऋषियों के हाथ से चढ़ाए हुए पूजा के फूल और आकाश से उतरी हुई
गंगा की धाराएँ हिमालय पर गिरती हैं। 2. सत्क्रिया :-सद्गुण, भलाई, आतिथ्य, शिष्टाचार, अभिवादन।
विधिप्रयुक्तां परिगृह्य सत्क्रियां परिश्रमं नाम विनीय चक्षणम्। 5/32
उस ब्रह्मचारी ने भेंट पूजा लेकर और पल भर अपनी थकावट मिटाकर। 3. सपर्या :-[सप+यक्+अ+टाप्] पूजा, अर्चना, सम्मान, सेवा, परिचर्या ।
तमातिथेयी बहुमानपूर्वया सपर्यया प्रत्युदियाय पार्वती। 5/31 अतिथि का सब सत्कार करने वाली पार्वती ने बड़े आदर से आगे बढ़कर उसकी पूजा की।
बाहू 1. बाहू :-[बाध+कु, धस्य हः] भुजा, कलाई, हाथ ।
अप विद्ध गदो बाहुर्भग्न शाख इव दुमः। 2/22 यह बाहु भी गदा के बिना ऐसा क्यों लग रहा है, जैसे कटी हुई शाखा वाला वृक्ष का ढूंठ हो। नितम्बिनीमिच्छसि मुक्तलज्जां कण्ठे स्वयंग्राहनिषक्त बाहुम्। 3/7 मैं अभी उस सुन्दरी पर ऐसा बाण चलाता हूँ, कि वह सब लाजशील छोड़कर आपके गले में बाँहें डाल देगी। अशेत सा बाहुलतोपधायिनी निषेदुषी स्थण्डिल एव केवले। 5/12 वे ही अपने हाथों का तकिया बनाकर बिना बिछी हुई भूमि पर बैठी-बैठी सो
जाती थीं। 2. भुजा :-[भुज्+टाप्] बाहु, हाथ।
लतावधूभ्यस्तरवोऽप्य वापुर्विनम्रशाखा भुजबन्धनानि । 3/39 वृक्ष भी अपनी झुकी हुई डालियों को फैला-फैलाकर उन लताओं से लिपटने लगे।
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