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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव 629 पतत्रिण 1. पतत्त्रिण :-पुं० [पतत्र+इनि] पक्षी, बाण, घोड़ा। पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं शिरीषपुष्पं न पुनः पतत्रिणः। 5/4 शिरीष के फूल पर भौरे भले ही आकर बैठ जायें, पर यदि कोई पक्षी उस पर आकर बैठने लगे, तब तो वह नन्हाँ सा फूल झड़ ही जायेगा। 2. विहंग :-[विहायसा गच्छति-गम्+खच्, मुम्, विहादेशः] पक्षी। सरिद्विहं गैरिव लीयमानैरामुच्यमानाभरणा चकासे। 7/21 जैसे रंग-बिरंगे पक्षियों के आ जाने से नदी सुहावनी लगने लगती है, वैसे ही मणियों, मोतियों और सोने के गहने पहना दिए जाने पर पार्वती जी की स्वभाविक सुन्दरता और निखर उठी। पति 1. पति :-[पाति रक्षति-पा+इति] स्वामी, मालिक, भर्ता । विधुरां ज्वलनाति सर्जमान्ननु मां प्रापय पत्युरन्तिकम्। 4/32 मेरा दाह करके मुझे मेरे पति के पास पहुँचा दो। प्रमदाः पतिवम॑गा इति प्रतिपन्नं हि विचेतनैरपि। 4/33 पति के साथ जाना तो जड़ों में भी पाया जाता है, फिर मैं चेतन होकर अपने पति के पास क्यों न जाऊँ। अरूपहार्यं मदनस्य निग्रहात्पिनाकपाणिं पतिमाप्तुमिच्छति। 5/53 उन महादेवजी से विवाह करने पर तुली हुई हैं, जो अब कामदेव के नष्ट हो जाने पर केवल रूप दिखाकर नहीं रिझाए जा सकते। तेषां मध्यगता साध्वी पत्युः पादार्पितेक्षणा। 6/11 जिनके बीच में, अपने पति के चरणों की ओर निहारती सती अरुन्धती। तस्याः शरीरे पतिकर्म चक्रुर्बन्धस्त्रियो याः पतिपुत्रवत्यः। 7/6 कुटुम्ब की सुहागिन और पुत्रवती स्त्रियाँ पार्वती जी का सिंगार करने लगीं। अखण्डितं प्रेम लभस्व प्रत्युरित्युच्यते ताभिरुमामनम्रा। 7/28 लाज से सकुचाती हुई पावती जी को सब सखियों ने यह आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे पति तुम्हें तन-मन से प्यार करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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