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कुमारसंभव
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नदी
1. नदी : - [ नद + ङीप् ] दरिया, सरिता ।
रविपीतजला तपात्यये पुनरोधेन हि युज्यते नदी । 4/44
नदियाँ गरमी में सूर्य की किरणों को जल पिलाकर छिछली हो जाती हैं, उन्हीं नदियों में वर्षा आने पर बाढ़ जा जाती है।
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2. सरित् : - [स्त्री० ] [ सृ+इति] नदी, धागा, डोरी ।
पुनन्ति लोकान्पुण्यत्वात्कीर्तयः सरितश्चते । 6/69
वे निर्मल नदियाँ अपनी पवित्रता से सारे संसार को पवित्र करती हैं, वैसे ही आपकी कीर्ति भी सब लोकों को पवित्र करती है।
3. समुद्रगा :- [ सह मुद्रया - ब०स०+गा] नदी ।
समुद्रगारूपविपर्ययेऽपि सहंसपाते इव लक्ष्यमाणे । 7/42 अपना नदी का रूप छोड़कर.... मानो हंस उड़ रहे हों ।
4. सिन्धु : - [ स्यन्द् + उद् संप्रसारणं दस्य धः ] समुद्र, सागर, एक नदी का नाम । कस्यार्थ धर्मों वद पीडयामि सिन्धोस्तटाबोध इव प्रवृद्धः । 3/6
जो उसका धर्म और अर्थ दोनों उसी प्रकार नष्ट कर देगा, जैसे बरसात में बढ़ी
हुई नदी का बहाव दोनों तटों को बहा ले जाता है।
मार्गाचल व्यतिकराकुलितेव सिन्धुः । 5/85
जैसे धारा के बीच में पहाड़ पड़ जाने से न तो नदी आगे बढ़ पाती है, न पीछे हट पाती है।
नित्य
1. नित्य :- [वि०] [नियमेन नियतं वा भवं - नित्यप्] शास्वत, चिरस्थायी । चन्द्रेव नित्यं प्रतिभिन्न मौलेश्चूडामणेः किं ग्रहणं हरस्य । 7/35
उनके मुकुट पर सदा रहने वाला चन्द्रमा ही उनका चूड़ामणि बन गया था, इसलिए वे दूसरा चूड़ामणि लेकर करते ही क्या ।
2. शाश्वत : - [वि०] [ शश्वद् भवः अण् ] नित्य, सनातन, चिरस्थायी ।
त्वमेव हव्यं होता च भोज्यं भोक्ता च शाश्वतः । 2/15
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आप ही सदा हवन की सामग्री भी हैं और आप ही हवन करने वाले हैं। आप ही भोग की वस्तुएँ भी हैं और आप ही भोग करने वाले भी हैं।