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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 607 कुमारसंभव जिसके मंत्रों से यज्ञ करके लोग स्वर्ग प्राप्त कर लेते हैं। वचस्यवसिरो तस्मिन्ससर्ज गिरमात्मभूः। 2/53 उनके कह चुकने पर ब्रह्माजी ऐसी मधुर वाणी बोले। क्रोधं प्रभो सं हरेति यावगिरः खे मरुतां चरन्ति। 3/72 यह देखते ही एक साथ सब देवता आकाश में चिल्ला उठे, हैं, हैं रोकिये-रोकिये अपने क्रोध को प्रभु। ईप्सितार्थ क्रियोदारं ते ऽभिनन्द्य गिरेर्वचः। 6/90 अपना काम पूरा हुआ देखकर सप्तऋषियों ने हिमालय की प्रशंसा की। 2. भारती :-स्त्री०[ [भरत+अण+ई] वाणी, वाच्य, वचन। तमर्थमिव भारत्या सुतया योक्तुमर्हसि। 6/79 इसलिए आप शिवजी से अपनी पुत्री का वैसे ही अटूट सम्बन्ध कर दीजिए, जैसे वाणी का अर्थ से हो गया है। 3. वाच :-[स्त्री०] [वच्+क्विप् दीर्घोऽसंप्रसारणं च] वचन, शब्द, पदावली। यदुच्यते पार्वति पापवृत्तयेन रूपमित्यव्यभिचारितद्वचः। 5/36 हे पार्वती जी ! यह ठीक ही कहा जाता है, कि सुन्दरता पाप की ओर कभी नहीं झुकती। जयेति वाचा महिमानमस्य संवर्धयन्तौ हविषेव वह्निम्। 7/43 जैसे आग में घी डालने से उसकी लपट बढ़ जाती है, वैसे ही उनकी जय-जयकार करके उनकी महिमा और बढ़ा दी। अपि शयन सखीभ्यो दत्तवायं कथंचित्। 7/95 सखियों की चुटकियों का ज्यों-त्यों उत्तर देने वाली पार्वती जी भी। निर्विभुज्य दशनच्छदं ततो वाचि भतुरवधी रणापरा। 8/49 यह सुनकर महादेव जी की बात अनसुनी सी करके अपना ओठ बिचका लिया। पार्वतीमवचनाम सूयया प्रत्युपेत्य पुनराह सस्मितम्। 8/50 महादेवजी जी उन पार्वती के पास पहुँचे, जो चुप्पी साधकर रूठी हुई बैठी थी और उनसे मुस्कुराते हुए कहने लगे। त्वं मया प्रिय सख समागता श्रोष्यतेव वचनानि पृष्ठतः। 8/59 जैसे मैं तुम्हारे पीछे आकर तुम लोगों की बात उस समय सुनता हूँ, जब तुम अपनी सखियों के साथ बैठकर बातें करती होती हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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