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कुमारसंभव
5. वपु : नपुं० [ वप् + उसि ] शरीर, देह ।
बभूव तस्याश्चतुरस्रशोभि वपुर्विभक्तं नवयौवनेन । 1/32 वैसे ही पार्वती जी का शरीर भी नया यौवन पाकर बहुत ही खिल उठा । निर्वाणभूयिष्ठमथास्य वीर्यं संधुक्षयन्ति वपुर्गुणेन । 3 / 52
डर के मारे कामदेव की शक्ति तो नष्ट हो गई थी तब मानो उसकी खोई हुई शक्ति फिर जाग उठी ।
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शैलात्मजापि पितुरुच्छिरसोऽभिलाषं व्यर्थं समर्थ्य वपुरात्मनश्च । 3/75 मेरे ऊँचे सिर वाले पिताजी का मनोरथ और मेरी सुन्दरता दोनों अकारथ हो गईं। अवगम्य कथीकृतं वपुः प्रियबन्धोत्व निष्फलोदयः । 4/13
जब उसे यह पता चलेगा कि तुम्हारा शरीर केवल कहानी भर रह गया है, तब वह अकारथ उगा हुआ चन्द्रमा ।
प्रतिपद्य मनोहरं वपुः पुनरप्या दिश तावदुत्थिः । 4 / 16
हे काम ! तुम अपने इस राख के शरीर को छोड़कर, पहले जैसा सुन्दर शरीर धारण करके ।
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धियते कुसुम प्रसाधनं तव तच्चारू वपुर्न दृश्यते । 4 / 18
तुमने अपने हाथों से मेरा जो वासन्ती श्रृंगार किया था, वह तो अभी ज्यों का त्यों बना हुआ है, पर तुम्हारा सुन्दर शरीर अब कहीं देखने को नहीं मिल रहा । मनीषिताः सन्ति गृहेषु देवतास्तपः क्व वत्सेक्वच तावकं वपुः । 5/4 वत्से ! तुम्हारे ही घर में इतने बड़े-बडे देवता हैं, कि तुम जो चाहो उनसे माँग लो। बताओ कहाँ तपस्या और कहाँ तुम्हारा कोमल शरीर ।
ध्रुवं वपुः कांचन पद्म निर्मितं मृदु प्रकृत्याच ससारमेव च । 5/19
मानो उनका शरीर सोने के कमलों से बना था, जो कमल से बने होने के कारण स्वभाव से कोमल भी था, पर साथ ही साथ सोने का बना होने के कारण ऐसा पक्का भी था, कि तपस्या से कुंभला न सके।
कुले प्रसूतिः प्रथमस्य वेधसस्त्रिलोक सौन्दर्य मिवोदितं वपुः । 5/41 मानो तीनों लोकों की सुन्दरता आप में ही लाकर भरी हो । यदर्थमम्भोजमिवोष्ण वारणं कृतं तपः साधनमेतया वपुः । 5/52 जैसे कोई धूप बचाने के लिए कमल का छाता लगा ले, वैसे ही इन्होंने भी अपना कोमल शरीर कठोर तपस्या में क्यों लगा दिया।