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रघुवंश
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श्रेणीबन्धातिन्वद्भिरस्तम्भां तोरणस्रजम्। 1/41 बगुले पाँत में उड़ते हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो खंभे के बिना ही बंदनवार टंगी हुई हो। निचरवान जयस्तम्भानगङ्गास्रोतोन्तरेषु सः। 4/36.
उन्हें जीतकर रघु ने गंगा सागर के द्वीपों में अपना विजय का खंभा गाड़ दिया। 3. स्थाणु :-[स्था + नु, पृषो० णत्वम्] टेक, पोल, स्तम्भ ।
सोढुं न तत्पूर्वमवर्णमीशे आलानिकं स्थाणुमिव द्विपेन्द्रः। 14/38 जैसे हाथी अपने अलान से खीझकर उसे उखाड़ने की चेष्टा करता है, वैसे ही मैं भी अपने इस कलंक को अब नहीं सह सकता।
स्नान
1. अभिषेक:-[अभि + सिच् + घञ्] छिड़कना, पानी के छींटे देना, राज्यतिलक
करना। निर्वय॑ते यैर्नियमाभिषेको येभ्यो विपाञ्जलयः पितृणाम्। 5/8 उन नदियों का जल तो ठीक है न जिसमें आप लोग प्रतिदिन स्नान, संध्या, तर्पण आदि करते हैं। स तावदभिषेकान्ते स्नातकेभ्यो ददौ वसु। 17/17
अभिषेक के पश्चात उन्होंने यज्ञ कराने वाले ब्राह्मणों को इतना धन दिया कि। 2. मज्जन :-[मस्णं भावे ल्युट्] स्नान करना, नहाना, डुबकी लगाना।
यद्गोप्रतरकल्पोऽभूत्संमर्दस्तत्र मज्जताम्। 15/101 वहाँ स्नान करने वालों की वैसी ही भीड़ हुई, जैसे गौओं को पार कराते समय होती है। परस्पराभ्युक्षण तत्पराणां तासां नृपो मज्जनरागदर्शी। 16/57 रानी एक दूसरे पर जल के छींटे उड़ाने लगीं। उन रानियों के स्नान की शोभा
देखकर नाव पर बैठे हुए राजा। 3. स्नान :-[स्ना भावे ल्युट्] धोना, मार्जन करना, स्नान द्वारा शुद्धि, कोई धार्मिक
या सांस्कारिक मार्जन। बलिक्रियावर्जित सैकतानि स्नानीयसंसर्गमनाप्नुवन्ति। 16/21 अब न तो सरयू के घाटों पर देवताओं के लिए बलि दी जाती है और न स्त्रियों के स्नान करने से, उसमें से अंगराग आदि की गंध ही निकल रही है।
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