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रघुवंश
अभवदस्य ततो गुणवत्तरं सनगरं नगरन्ध्रकरौजसः । 9/2
क्रौंच पहाड़ को फाड़ देने वाले कार्तिकेय के समान वे बलवान थे, सारी प्रजा उन्हें पहले के सभी राजाओं से बढ़कर मानने लगी।
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4. शरजन्मना :- [ शृ + अच् + जन्मन् ] कार्तिकेय का विशेषण |
उमावृषाङ्कौ शरजन्मना यथा यथा जयन्तेन शची पुरंदरौ । 3 / 23
जैसे कार्तिकेय के समान पुत्र को पाकर शंकर और पार्वती को अत्यन्त प्रसन्नता हुई थी और जयंत जैसे पुत्र को पाकर इन्द्र और शची प्रसन्न हुए थे ।
5. षडानन : - [ सो + क्विप्, पृषो० + आननः ] कार्तिकेय का विशेषण ।
षडाननापीत पयोधरासु नेता चमूनामिव कृत्तिकासु । 14 / 22
जैसे स्वामी कार्तिकेय अपने छः मुखों से छहों कृत्तिकाओं का स्तन पीकर समान रूप से प्रेम दिखलाते थे ।
6. षण्मुख :- [ सो + क्विप्, पृषो० + मुखः] कार्तिकेय का विशेषण |
सगुणानां बलानां च षण्णां षणमुखविक्रमः । 17/67
कार्तिकेय के समान पराक्रमी राजा अतिथि यह भलीभाँति जानते थे, कि छः राज गुणों और छः प्रकार की सेनाओं के साथ ।
7. सेनानी :- [सि + न + टाप्, सह इनेन प्रभुणा वा + नी ] कार्तिकेय का नाम । अथैनमद्रेस्तनया शुशोच सेनान्यमालीढमिवासुरास्त्रैः 1 2 / 37
इतने पर ही पार्वती जी को ऐसा शोक हुआ, जैसा दैत्यों के बाणों से घायल स्वामी कार्तिकेय को देखकर हुआ था ।
8. स्कन्द :- [ स्कन्द + अच्] कार्तिकेय का नाम ।
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यो हेमकुम्भस्तननिःसृतानां स्कन्दस्य मातुः पयसां रसज्ञः । 2/36 स्वयं कार्तिकेय की माता पार्वती जी ने अपने सोने के घटरूप स्तनों के रस से सींच-सींचकर, इसे इतना बड़ा किया है।
अथोपयन्त्रा सदृशेन युक्तां स्कन्देन साक्षादिव देवसेनाम् । 7/1
अपनी पत्नी इंदुमती के साथ जाते हुए अज ऐसे लग रहे थे, मानो साक्षात् देवसेना के साथ स्कंद चले जा रहे हों।
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9. हरकुमार : - [ हृ + अच् + कुमार:] शिवपुत्र कार्तिकेय ।
हरेः कुमारोऽपि कुमार विक्रमः सुरद्विपास्फालनकर्कशाङ्गलौ । 3/55 कार्तिकेय के समान पराक्रमी रघु ने भी अपना नाम खुदा हुआ एक बाण इन्द्र की