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रघुवंश
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सूर्य के उदय होने के पहले ही उनका चतुर सारथी अरुण, संसार से अंधेरे को भगा देता है। यह ठीक भी है, क्योंकि जब सेवक चतुर रहता है, तब स्वामी स्वयं कार्य करने का कष्ट नहीं उठाता। शस्त्रक्षताश्वद्विपवीरजन्मा बालारुणोऽभूदुधिर प्रवाहः। 7/42 शस्त्रों से घायल घोड़ों, हाथियों और योद्धाओं के शरीर से निकला हुआ लहू,
प्रातः काल के सूर्य की लाली जैसा लगने लगा। 3. अर्क :-[अ + घञ्- कुत्वम्] सूर्य, प्रकाश किरण ।
नभसा निभृतेन्दुना तुलामुदितार्केण समारोह तत् 8/15 उस आकाश के समान लग रहा था, जिसमें एक ओर चंद्रमा छिप रहे हों और दूसरी ओर सूर्य निकल रहे हों। बालार्कप्रतिमेवाप्सु वीचिभिन्ना पतिश्यतः। 12/100
जैसे चंचल लहरों में प्रातः काल के सूर्य का प्रतिबिंब शोभा देता है। 4. अहरपति :-[न जहाति त्यजति सर्वथा परिवर्तनं, न + हा + कनिन न०ता० +
पतिः ] सूर्य। द्यावापृथिव्योः प्रत्यग्रमहर्पति रिवातपम्। 10/54
जैसे सूर्य अपनी नई धूप पृथ्वी और आकाश दोनों में बाँट देता है। 5. उष्णतेज :-[उष् + नक् + तेजः] सूर्य।
आरोप्य चक्रभ्रममुष्णतेजास्त्वष्टेव यत्नोल्लिखितो विभाति। 6/32 ये पतली गोल कमर वाले सूर्य के समान जो राजा चमक रहे हैं, ऐसा जान पड़ता
है, विश्वकर्मा ने अपने शान चढ़ाने के चक्र पर इन्हें बड़े यत्न से खराद दिया है। 6. उष्णदीधिति :-[उष् + नक् + दीधितिः] सूर्य।
अनृणत्वमुपेयिवान्बभौ परिधेर्मुक्त इवोष्ण दीधितिः। 8/30 अपने पितरों के ऋण से मुक्त होकर अज वैसे ही शोभित हो रहे हैं, जैसे मंडल
से छूटकर सूर्य शोभा देता है। 7. उष्णरश्मि :-[उष् + नक् + रश्मिः ] सूर्य।
यतस्त्वया ज्ञानमशेषमाप्तं लोकेन चैतन्यमिवोष्णरश्मेः। 5/4 जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सोए हुए संसार को जगा देता है, वैसे ही जिस गुरु ने आपको ज्ञान की ज्योति देकर जगाया है। तस्मादपावर्तत कुण्डिनेश: पर्वात्यये सोम इवोष्णरश्मेः। 7/33
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