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कालिदास पर्याय कोश तदीयमाक्रन्दितमार्तसाधोगुहा निबद्धप्रति शब्ददीर्घम्। 2/28 सिंह की झपट से नंदिनी रंभाने लगी और उसकी ध्वनि गुफा में गूंज उठी। तं विस्मितं धेनुरुवाच साधो मायां मयोद्भाव्य परीक्षितोऽसि। 2/62 राजा दिलीप अचरज भरी आँखों से यह सब देख रहे थे, इतने में नंदिनी मनुष्य की बोली में बोलने लगी :-हे साधु! मैंने माया रचकर तुम्हारी परीक्षा ली थी। अद्धा श्रियं पालित संगराय पत्यर्पयिष्यत्यन्यां स साधुः। 13/65
सज्जन भरत मुझे सुरक्षित राज्यलक्ष्मी अवश्य ही सौंपेंगे। 2. संत :-[सन् + त] गुणी, पुण्यात्मा, कृपालु, दयालु, ऋषि।
तं सन्तः श्रोतुमर्हन्ति सदसद्वयक्ति हेतवः। 1/10 इस काव्य को सुनने के अधिकारी भी वे ही सज्जन हैं, जिन्हें भले-बुरे की अच्छी परख है।
संपद
1. अर्थ :-[ऋ + थन्] दौलत, धन, संपत्ति।
अगृनुराददे सोऽर्थमसक्तः सुखमन्वभूत्। 1/21 लोभ छोड़कर धन इकट्ठा करते थे और मोह छोड़कर संसार के सुख भोगते थे। अप्यर्थकामौ तस्यास्तां धर्म एव मनीषिणः। 1/25 यद्यपि दंड और विवाह वास्तव में अर्थशास्त्र और कामशास्त्र के विषय हैं, फिर भी उनके हाथों में पहुँचकर धर्म के विषय बन गए थे। निर्बन्ध संजातरुषार्थकार्यमचिन्तयित्वा गुरुणामुक्तः। 5/21 पर जब मैंने बार-बार दक्षिणा मांगने के लिए उनसे हठ किया, तो वे बिगड़ खड़े हुए और मेरी दरिद्रता का विचार किए बिना ही बोल उठे :- । गामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुवेरात्। 5/26 रघु ने भी देखा कि पृथ्वी पर तो धन है नहीं, इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि
कुबेर से ही धन लिया जाए। 2. धन :-[धन् + अच्] संपत्ति, दौलत, धन, निधि, रुपया।
वनाय पीतप्रतिबद्धवत्सां यशोधनो धेनुमृषेर्मुमोच। 2/1 तब यशस्वी राजा दिलीप ने बछड़े को बाँध दिया और ऋषि की गौ को जंगल में चराने के लिए खोल दिया।
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