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रघुवंश
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शीर्षच्छेद्यं परिच्छद्य नियन्ता शस्त्रमाददे । 15 / 51
राम ने निश्चय कर लिया कि इसका सिर काटना ही होगा, उन्होंने हाथ में शस्त्र उठा लिया।
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शिला
1. दृषद :- [दृ + अपि षुक्, हस्वश्च] चट्टान, शिला ।
दृषदो वासितोत्सङ्गा निषण्ण मृग नाभिभि: । 4/74
उन पथरीली पाटियों पर बैठकर सुस्ताने लगे जिनमें से कस्तूरी मृग के बैठने से सुगंध आ रही थी।
2. शिला :- [शिल + टाप्] पत्थर, चट्टान ।
प्रत्यपद्यत चिराय यत्पुनश्चारु गौतमवधूः शिलामयी । 11/34
उसके छूते ही पति के शाप से पत्थर बनी हुई अहल्या को, फिर इतने दिनों पीछे पहले वाला सुन्दर ।
पादपाविद्ध परिघः शिलानिष्पिष्ट मृद्गरः । 12/73
पेड़ों से मार-मारकर राक्षसों की लोहे की गदाएँ तोड़ डालते थे और बड़ी चट्टानें पटक-पटक कर ।
रुरोध रामं शृङ्गीव टङ्कच्छिन्न मनः शिलः । 12/80
राम का मार्ग रोककर उसी प्रकार खड़ा हो गया, जैसे टाँगी से कटी हुई कोई मैनसिल की चट्टान आ गिरी हो ।
शुद्ध
1. पावन : - [ पू+ णिच् + ल्युट् ] पवित्र, पुनीत, विशुद्ध, परिष्कृत | वामनाश्रमपदं ततः परं पावनं श्रुतमृषेरुपेयिवान् । 11/22
वहाँ से रामचंद्रजी वामन के उस पवित्र आश्रम में गए, जिसके विषय में
विश्वामित्र जी ने उन्हें सब बता दिया था।
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2. विशुद्ध :- [ वि + शुध् + क्त] पवित्र, निष्पाप, बेदाग, निष्कलंक |
हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा । 1/10
सोने का खरापन या खोटापन आग में डालने पर ही जाना जाता है। स किवदन्तीं वदतां पुरोगः स्ववृत्तमुद्दिश्य विशुद्धवृत्तः । 14 / 31
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