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रघुवंश
तत्प्रतिद्वन्द्विनो मूर्ध्नि दिव्याः कुसुमवृष्टयः। 15/25 उसके प्रतिद्वन्द्वी शत्रुघ्न के ऊपर स्वर्ग से फूलों की वर्षा होने लगी। मानोन्नतेनाप्यभिवन्द्य मूर्धा मूर्धाभिषिक्तं कुमुदो बभाषे। 16/81 राजा कुश को मान से उठा हुआ अपना सिर नवाकर कुमुद ने प्रणाम किया और प्रणाम करके वह बोला। तस्यैकस्योच्छ्रितं छत्रं मूर्ध्नि तेनामलत्विषा। 17/33 यद्यपि राज-छत्र केवल अतिथि के सिर पर ही लगा हुआ था, पर उस श्वेत रंग
के छत्र ने। 3. मौलि :-[मूलस्यादूरभवः इज] सिर, चोटी।
प्रवर्तयामास किलानुसूया त्रिस्रोतसं त्र्यम्बकमौलिमालाम्। 13/51 अनुसूयाजी उन त्रिपथगा गंगा जी को यहाँ ले आई हैं, जो शिवजी के सिर पर माला के समान सुन्दर लगती हैं। लोकेन भावी पितुरेव तुल्यः संभावितो मौलिपरिग्रहात्सः। 18/38 उस बालक सुदर्शन ने जब सिर पर मुकुट धारण किया, तभी प्रजा ने आँक लिया कि यह पिता के समान ही तेजस्वी होगा। सालक्तको भूपतयः प्रसिद्धैर्ववन्दिरे मौलिभिरस्य पादौ। 18/41 राजाओं ने अपने प्रसिद्ध मुकुटों से उन महावर लगे पैरों का वन्दन किया। शिर :-[शृ + क] सिर। अपनीतशिरस्त्राणाः शेषास्तं शरणं ययुः। 4/64 उनमें से जो जीते बच गए, उन्होंने अपने सिरों से लोहे के टोप उतार-उतार कर रघु के चरणों में रख दिए। आधोरणानां गजसंनिपाते शिरांसि चक्रैर्निशितैः क्षुराग्रैः। 7/46 जहाँ हाथियों का युद्ध हो रहा था, वहाँ पैने छुरे वाले चक्रों से जिन हाथीवानों के सिर कट गए थे। तस्तार गां भल्ल निकृतकण्ठैहुँकार गर्भर्द्विषतां शिरोभिः। 7/58 जो हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे, उनके सिर काट-काट कर अज ने पृथ्वी पाट दी। इति शिरसि स वामं पादमाधायराज्ञा मुदवहदनवद्यां तामवद्यादपेतः।7/70 इस प्रकार पवित्र अज उन राजाओं के सिरों पर बायाँ पैर रखकर, सुंदरी इंदुमती को लेकर चले।
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