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कालिदास पर्याय कोश अलं महीपाल तव श्रमेण प्रयुक्तमप्यस्त्रमितो वृथा स्यात्। 2/34 सिंह बोला :-हे राजा! तुम मुझे मारने का यत्न मत करो क्योंकि मुझ पर जो भी अस्त्र चलाओगे, वह व्यर्थ जाएगा। नवे तस्मिन्महीपाले सर्वं नवामिवाभवत्। 4/11 ऐसा जान पड़ने लगा मानो नए राजा को पाकर सभी वस्तुएँ नई हो गई हों। अपरान्तमहीपाल व्याजेन रघवे करम्। 4/58
पच्छिम् के राजाओं ने जो रघु के अधीन होकर उन्हें कर दिया था। 47. मानवदेव :-[मनोरपत्यम् अण + देवः] राजा।
अन्यत्र रक्षो भवनोषितायाः परिग्रहन्मानवदेव देव्याः। 14/32 हे नरश्रेष्ठ राजन् ! आपने राक्षस के घर में रहने वाली देवी सीता को फिर से
ग्रहण कर लिया है, उसे लोग अच्छा नहीं समझते। 48. राजा :-[राज् + क्विप्] राजा।
दिलीप इति राजेन्दु रिन्दुः क्षीर निधाविव। 1/12 राजा दिलीप ने वैसे ही जन्म लिया, जैसे क्षीरसागर में चंद्रमा ने जन्म लिया था। न किलानुययुस्तस्य राजानो रक्षितुर्यशः। 1/27 दिलीप को छोड़कर और कोई भी राजा अपनी प्रजा की रक्षा में नाम न कमा
सका।
तयोर्जगृहतुः पादानराजा राज्ञी च मागधी। 1/57 राजा दिलीप और मगध की राजकुमारी रानी सुदक्षिणा ने चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया। इति विज्ञापितो राजा ध्यानस्तिमित लोचनः। 1/73 राजा की बात सुनकर वशिष्ठजी ने अपनी आँखें बंद करके क्षण भर के लिए ध्यान लगाया। स शापो न त्वया राजन्न च सारथिना श्रुतः। 1/78 हे राजन् ! उस शाप को न तो तुम ही सुन पाए, न तुम्हारा सारथी ही। निवर्त्य राजा दयितां दयालुस्तां सौरभेयीं सुरभिर्य शोभिः। 2/3 कोमल हृदय वाले राजा दिलीप ने रानी सुदक्षिणा को लौटा दिया और स्वयं उस नंदिनी की रक्षा करने लगे, जो ऐसी प्रतीत होती थी। राजा स्वतेजो भिरदयतान्त गीव मन्त्रौषधिरुद्धवीर्यः। 2/32
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