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रघुवंश
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मित्र
1. मित्र :-दोस्त, साथी, सहचर।
अवेहि मां किंकरमष्टमूर्तेः कुम्भोदरं नाम निकुम्भ मित्रम्। 2/35 मैं शंकरजी का कृपापात्र और सेवक कुम्भोदर नाम का गण हूँ और शिवाजी के गण निकुम्भ का मित्र हूँ। तेन मध्यभराक्तीनि मित्राणि स्थापितान्यतः। 17/58
उन्होंने ऐसे लोगों को मित्र बनाया जो न नीच ही थे, न धनी ही थे। 2. सखि :-(पुं०) [सह समानं ख्यायते ख्या + ङिन् नि०] मित्र, साथी, सहचर।
संमोहनं नाम सखे ममास्त्र प्रयोग संहारविभक्त मंत्रम्। 5/57 देखिए ! मेरे मेरे पास यह सम्मोहन नाम का गंधर्वास्त्र है, जिसके चलाने और रोकने के अलग-अलग मंत्र हैं। पूर्ववृत्त कथितैः पुराविदः सानुजः पितृसखस्य राघवः। 11/10 उनके पिता के मित्र विश्वामित्रजी उन्हें मार्ग में पुरानी कथाएँ सुनाते चले जा रहे
थे। 3. सुहृद :-[सु + डु + हृदः] मित्र ।
स हि निदेशमलंघयताम भूत्सुहृदयो हृदयः प्रतिगर्जताम्। 9/9 जो उनका कहा मान लेते थे, उन्हें दया करके छोड़ देते थे पर जो ऐंठकर उनसे टक्कर लेने आगे आते थे, उन्हें मिटाकर ही छोड़ते थे। रघुपतिरपि जातवेदो विशुद्धां प्रगृह्य प्रियां प्रियसुहृदि विभीषणे संगम्य्य श्रियं वैरिणः। 12/104 राम ने रावण की राज्यश्री विभीषण को सौंप दी और फिर सीताजी को अग्नि में शुद्ध करके अयोध्या की और लौटे।
मिथिला
1. मिथिला :- नगर का नाम, मिथिला।
तं न्यमंत्रयत संभृतक्रतु मैथिलः स मिथिलां व्रजन्वशी। 11/32 उन्हीं दिनों राजा जनक ने जनकपुरी में धनुष यज्ञ ठान रखा था, उसमें उन्होंने मुनियों को भी निमंत्रण दिया था।
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