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कालिदास पर्याय कोश इत्यध्वन: कैश्चिदहोभिरन्ते कूलं समासाद्य कुशः सरय्वाः। 16/35
इस प्रकार मार्ग में कुछ दिन बिताकर कुश, सरयू के किनारे पहुंचे। 2. पंथ :-[पथ + क + घञ्] रास्ता, सड़क, पथ, मार्ग।
आदास्यमानः प्रमदामिषं तदावृत्य पंथानमजस्य तस्थौ। 7/31 उनसे सुन्दरी इन्दुमती को छीन लिया जाये इसलिए वे सब मिलकर आगे अज का मार्ग रोक कर बीच में ठहर गए। बहुधाप्यागमैर्भिन्नाः पन्थानः सिद्ध हेतवः। 10/26 उसी प्रकार परमानन्द पाने के जितने मार्ग बताए गए हैं सब आप में ही पहुँचते
3. पथ :-[पथ् + क (घबर्थे)] रास्ता, मार्ग।
आसीत्कलप्तरुच्छायामाश्रिता सुरभिः पथि। 1/75 तब मार्ग में कल्पवृक्ष की छाया में कामधेनु बैठी हुई थी। उभावलं चक्रतुरंचिताभ्यां तपोवनावृत्ति पथं गताभ्याम्। 2/18 उन दोनों को धीरे-धीरे चलते देखकर तपोवन का मार्ग बस देखते ही बनता था। न केवलं सद्मनि मागधीपतेः पथि व्यजृम्भन्त दिवौकसामपि। 3/19 केवल सुदक्षिणा के पति दिलीप के ही राजमंदिर में ही नहीं, वरन् आकाश में देवताओं के यहाँ भी नाच गान हो रहा था। सरितः कुर्वती गाथाः पथश्चाश्यानकर्दमान्। 4/24 शरद् के आते ही नदियों का पानी उतर गया और मार्ग का कीचड़ सूख गया। वैदर्भनिर्दिष्टमसौ कुमारः क्लुप्तेन सोपानपथेन मंचम्। 6/3 वैसे ही राजकुमार अज भी सुन्दर सीढ़ी पर चढ़कर भोज के बताए हुए मंच पर बैठ गए। उपवीणयितुं ययौ खेरुदयावृत्ति पथेन नारदः। 8/33 वीणा के साथ गाना सुनाने के लिए नारदजी आकाश मार्ग से चले जा रहे थे। वैमानिकाः पुण्यकृतरत्यजन्तु मरुतां पथि। 10/46 अब आप लोग निडर होकर अपने-अपने विमानो पर चढ़कर आकाश मार्ग में घूमिए। तौ बलातिबलयोः प्रभावतो विद्ययोः पथि मुनि प्रदिष्टयोः। 11/9
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