________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
257
रघुवंश
वहाँ वृक्षों की सुन्दरी नायिका नवमल्लिका लता भी थी, जो फूलों की मुस्कान
लेकर देखने वालों को भी पागल बनाये डालती थी। 2. मनोज्ञ :-[मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन् + ज्ञ] सुहावना, प्रिय, रुचिकर,
सुन्दर। पुराणपत्रापगमादनन्तरं लतेव संनद्ध मनोज्ञ पल्लवा। 3/7 जैसे वसंत ऋतु में लताएं पुराने पत्ते गिराकर नए कोमल पत्तों से लदकर सुंदर लगने लगती हैं। मनोजगन्धं सहकारभंगं पुराणशीधुं नवपाटलं च। 16/52 मनोहर गंध वाली आम की बौर, पुरानी मदिरा और नये पाटल के फूल लाकर। मनोज्ञ एव प्रमदामुखानम्भोविहार कुलितोऽपि वेषः। 16/67 इन स्त्रियों का वेश बेढंगा हो गया है, फिर भी देखो, ये कितनी मनोहर लग रही
3. मनोहर :-[मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन् + हर] सुखद, आकर्षक, कमनीय,
प्रिय। रघुः क्रमाद्यौवन भिन्न शैशवः पुपोष गाम्भीर्य मनोहरं वपुः। 3/32 वैसे ही जब रघु ने भी बचपन बिताकर युवावस्था में पैर रखा तब उनका शरीर और भी खिल उठा। अलिभिरंजन बिन्दु मनोहरैः कुसुमपंक्ति निपातिभिरंकितः। 9/41 तिलक वृक्ष के फूलों पर मंडराते हुए काजल की बंदियों के समान सुन्दर भौरे
ऐसे जान पड़ते थे, मानो वनस्थलियों का मुख भी चीत दिया गया हो। 4. ललित :-[लल् + क्त] प्रिय, सुन्दर, मनोहर।
विधाय सृष्टिं ललितां विधातुर्जगाद भूयः सुदतीं सुनन्दा। 6/37 विधाता की सुन्दर रचना और सुन्दर दांतों वाली इन्दुमती को वहाँ से अनूप राजा के आगे ले जाकर सुनन्दा बोली। अथ तस्य विवाह कौतुकं ललितं बिभ्रत एव पार्थिवः। 8/1 अभी अज ने विवाह का सुन्दर मंगल-सूत्र उतारा भी नहीं था, कि रघु ने उनके हाथों में। कार्तिकीषु सवितानहर्म्य भाग्यामिनीषु ललितांगनासखः। 19/39 कार्तिक की रातों में वह राजभवन के ऊपर चंदोवा तनवा देता था और सुन्दरियों के साथ उस चाँदनी का आनंद लेता था।
For Private And Personal Use Only