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रघुवंश
235 तस्मिन्ह्रदः संहितमात्र एवं क्षोभात्समाविद्धतरंगहस्तः। 16/78 उनके धनुष चढ़ाते ही वहाँ का जल, खलबलाता हुआ अपने तरंग रूपी हाथ जोड़े हुए। विभूषणप्रत्युपहारहस्तमुपस्थितं वीक्ष्य विशांपतिस्तम्। 16/80 कुश ने देखा कि कुमुद के हाथ में वही आभूषण है। तस्याः स्पृष्टै मनुजपतिना सहचर्याय हस्ते। 16/87 जब राजा कुश से उस कन्या का हाथ पकड़ा। चुम्बने विपरिवर्तिताधरं हस्तरोधि रशनाविघट्टने। 19/27 जब वह स्त्रियाँ के ओठ चूमने लगता, तब वे मुंह फेर लेती थीं, और जब कमर का नाड़ा खोलने लगता, तब हाथ थाम लेतीं।
भुजगेन्द्र 1. भुजंगराज :-[भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च राज] नागराज, शेषनाग
का विशेषण। लक्ष्येव सार्धं सुरराज वृक्षः कन्यां पुरस्कृश्य भुजंगराजः। 16/79 इतने में ही उस जल में से अचानक एक कन्या को आगे किए हुए नागराज कुमुद इस प्रकार निकले, मानो लक्ष्मी को साथ लेकर कल्पवृक्ष निकल आया
हो।
2. भुजगेन्द्र :-[भुज् भक्षणे क, भुजः कुटिलीभवन् सन् गच्छति गम्+उ+इन्द्रः]
शेषनाग के विशेषण। तत्प्रसुप्तभुजगेन्द्र भीषणं वीक्ष्य दाशरथिराददे धनुः। 11/44 धनुष ऐसा जान पड़ता था मानो कोई बड़ा भारी अजगर सोया हुआ हो, देखते-देखते
राम ने शंकर जी के धनुष को उठा लिया। 3. महोरग :-[मह+घ+टाप्+उरगः] बड़ा साँप, शेषनाग।
किं महोरग विसर्पि विक्रमो राजिलेषु गरुडः प्रवर्तते। 11/27 क्योंकि भला बड़े-बड़े सो पर आक्रमण करने वाला गरुड़, क्या कभी जल के छोटे-छोटे साँपों पर आक्रमण किया करता है। वपुर्महोरगस्येव करालफणमण्डलम्। 12/98 वह ऐसी थी मानो फणों का चमकीला मंडल लिए हुए शेषनाग ही हों।
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