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रघुवंश
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बुद्धि
1. चेतना :-[चित्+ल्युट्] ज्ञान, संज्ञा, प्रतिबोध, समझ, प्रज्ञा ।
पश्चिमाद्यामिनीयामात्प्रसादमिव चेतना। 17/1
जैसे रात के चौथे प्रहर में अर्थात् ब्राह्म-मुहूर्त में बुद्धि को नयापन मिल जाता है। 2. धी :-[ध्यै+क्विप्, संप्रसारण] बुद्धि, समझ। धियः समग्रैः स गुणैरुदारधीः क्रमाच्चतस्त्रश्चतुरर्णवोपमाः। 3/30 वैसे ही बुद्धिमान रघु ने अपनी तीव्र बुद्धि की सहायता से शीघ्र ही चार समुद्रों
के समान विस्तृत चारों विद्याएँ सीख ली। 3. प्रज्ञा :-[प्र+ज्ञा+अ+टाप्] मेधा, समझ, बुद्धि।
आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः। 1/15 जैसा सुन्दर उनका रूप था, वैसी ही तीखी उनकी बुद्धि थी, जैसी तीखी बुद्धि
थी, वैसी ही शीघ्रता से उन्होंने सब शास्त्र पढ़ डाले थे। 4. बुद्धि :-[बुध्+क्तिन्] मति, समझ, प्रज्ञा, प्रतिभा।
शास्त्रेष्व कुंठिता बुद्धिमौर्वी धनुषि चातता। 1/19 शास्त्रों का उन्हें अच्छा ज्ञान था और धनुष चलाने में भी वे एक ही थे, इसलिए वे अपना सब काम अपनी तीखी बुद्धि और धनुष पर चढ़ी हुई डोरी इन दोनों से ही निकाल लेते थे। अप्यग्रणीमन्त्र कृतामृषीणां कुशाग्रबुद्धे कुशली गुरुस्ते। 5/4 हे बुद्धिमान् ! जिस गुरु ने आपको ज्ञान की ज्योति देकर जगाया है और मंत्र द्रष्टा
ऋषियों में श्रेष्ठ हैं, वे कुशल से तो हैं न। 5. मति :-[मन्+क्तिन्] बुद्धि, समझदारी, ज्ञान, संकल्प, मन।
क्व सूर्यप्रभवो वंशः क्व चाल्प विषया मतिः। 1/2 कहाँ तो सूर्य से उत्पन्न हुआ वह वंश, कहाँ मोटी बुद्धि वाला मैं।
भ
भरत 1. कैकेयीतनय :-भरत, कैकेयी का बेटा, राम का भाई।
श्रुत्वा तथा विधं मृत्यु कैकेयीतनयः पितुः। 2/13 जब भरत जी को अपने पिता की मृत्यु का सब समाचार मिला।
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