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रघुवंश
179 यदि जीते रहोगे तो पिता के समान तुम अपनी पूरी प्रजा की रक्षा कर सकोगे। ऋणाभिधानात्स्वयमेव केवलं तदा पितृणां मुमुचे स बन्धनात्। 3/20 पुत्र न होने से जो मैं पितरों के ऋण के बन्धन में था, उस बन्धन से आज मैं ही छूट गया हूँ। पितुः प्रयत्नात्स समग्र संपदः शुभैः शरीरावयवैर्दिने दिने। 3/22 वैसे ही बालक रघु के अंग भी संपत्तिशाली पिता की देखरेख में दिन-दिन बढ़ने
लगे।
अभूच्च नम्रः प्रणिपात शिक्षया पितुर्मदं तेन ततान सोऽर्थकः। 3/25 और सिर झुकाकर बड़ों का प्रणाम करना भी सीख गए, पिता राजा दिलीप अपने पुत्र की बाल लीलाओं को देखकर फूले नहीं समाते थे। त्वचं स मेध्यां परिधाय रौरवीमशिक्षितास्त्रं पितुरेव मंत्रवत्। 3+31 पवित्र रुरु मृग का चर्म पहनकर रघु ने मंत्रयुक्त अस्त्रों की शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त की। तेन सिंहासन पित्र्यमखिलं चारिमंडलम्। 4/4 रघु ने पिता के सिंहासन पर और अपने शत्रुओं पर एक साथ अधिकार कर लिया। पुत्रं लभस्वात्मगुणानुरूपं भवन्त्मीड्यं भवतः पितेव। 5/34 जैसे तुम्हारे पिता दिलीप को तुम्हारे जैसा श्रेष्ठ पुत्र मिला, वैसे ही तुम्हें भी तुम्हारे ही समान प्रतापी पुत्र हो। अतः पिता ब्रह्मण एव नाम्ना तमात्मजन्मानमजं चकार। 5/36 ब्राह्म मुहूर्त में जन्म होने से पिता ने ब्रह्मा के नाम पर लड़के का नाम अज रक्खा। श्रीः अभिलाषापि गुरोरनुज्ञां धीरेव कन्या पितुरा चकांक्ष। 5/38 जैसे शीलवती कन्या विवाह के लिए पिता की आज्ञा ले लेना चाहती है, वैसे ही राज्यलक्ष्मी भी यद्यपि सुंदर युवा अज को स्वामी बनाना चाहती थी, फिर भी रघु की आज्ञा का बाट जोह रही थी। गुर्वी धुरं यो भुवनस्य पित्रा धुर्येण दम्यः सदृशं बिभर्ति। 6/78 ये भी अपने प्रतापी पिता के समान ही राज्य का सब काम संभालते हैं। तस्याः स रक्षार्थ मनल्पयोधमादिश्य पित्र्यं सचिवं कुमारः। 7/36 अज ने अपने पिता के मंत्री को आज्ञा दी कि थोड़े से योद्ध साथ लेकर इंदुमती की रक्षा करो।
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