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रघुवंश
जो विष्णु भगवान के चरण अपनी गोद में लेकर पलोट रही थीं। अदर्शयन्वक्तुमशक्नुवत्यः शाखा भिरावर्जित पल्लवाभिः। 13/24 पर बोल न सकने के कारण, उन्होंने अपनी पत्तों वाली डालियाँ ही इधर-उधर
झुकाकर मुझे तुम्हारा पता बता दिया था। 4. पत्र :-[पत्+ष्ट्रन] पत्ता।
पुराण पत्रा पगमादनन्तरं लतेव संनद्धमनोज्ञपल्लवा। 3/7 जैसे वसंत ऋतु में लताएँ पुराने पत्तों को गिराकर नये कोमल पत्तों से लदकर
सुंदर लगने लगती हैं। 5. प्रवाल :-[प्र+ब (व) ल्+णिच्+अच्] कोंपल, अंकुर, किसलय।
प्रवालशोभा इव पादपानां श्रृंगारचेष्टा विविधा बभूवुः। 6/12 राजाओं ने अपना प्रेम जताने के लिए जो वृक्षों के पत्तों के समान अनेक प्रकार से भौंह आदि चलाकर शृंगार-चेष्टाएँ कीं। अनन्तराशोकलता प्रवालं प्राप्येव चूतः प्रति पल्लवेन। 7/21 जैसे आम को पेड़ अपनी पत्तियों के साथ अशोक लता की लाल पत्तियों के मिल जाने से मनोहर लगता है।
पिता
1. गुरु :-पिता, जनक, अग्रज, ज्येष्ठ।
गंगा प्रपातान्त विरूढशष्पं गौरीगुरोर्गह्वर मा विवेश। 2/26 वह झट हिमालय की उस गुफा में बैठ गई, जिसमें गंगाजी की धारा गिर रही थी
और जिसके तट पर हरी-हरी घास खड़ी हुई थी। न केवलं तद्गुरुरेकपार्थिवः क्षितावभूदेकधनुर्धरोऽपि सः। 3/31 उनके पिता केवल चक्रवर्ती राजा ही नहीं थे, वरन् अद्वितीय धनुष चलाने वाले भी थे। जगत्प्रकाशं तदशेषमिज्यया भवद्गुरुर्लंघयितुं ममोद्यतः। 3/48 मैंने सौ यज्ञ करने का जो यश पाया है, उसे तुम्हारे पिता मुझसे छीनना चाहते हैं। अजस्त्रदीक्षा प्रयतः स मदगुरुः क्रतोरशेषेण फलने युज्यताम्। 3/65 यही वरदान दीजिए कि मेरे पिता इस घोड़े के बिना ही सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का फल पा जाये।
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