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रघुवंश
ये बड़े-बड़े मगरमच्छ अपना मुँह खोलकर मछलियों के लिए दिए गए समुद्र का जल पी जाते हैं और फिर मुँह बंद करके। ततः समाज्ञापयदाशु सर्वानानायिनस्तद्विचये नदीष्णान्। 16/45 तब उन्होंने सब धीवरों को नदी जल में आभूषण ढूढंने की आज्ञा दी। प्रजास्तद्गुरुणा नद्यो नभसेव विवर्धिताः। 17/41 उनके पिता के समय जो प्रजा सावन की नदी के समान भरी पूरी थी। वृद्धौ नदी मुखेनैव प्रस्थानं लवणाम्भसः। 17/54
ज्वार के समय जब समुद्र बढ़ता है, तब नदियों के मार्ग से ही बढ़ता है। 3. सरिता :-[सृ+इति] नदी।
मदोदग्राः ककुद्मन्तः सरितां कूलमुदुजाः। 4/22 कहीं ऊँचे-ऊँचे कंधोंवाले मतवाले साँड़ नदियों के कगार ढाते हुए। सरितः कुर्वती गाधाः पथश्चाश्यान कर्दमान्। 4/24 शरद् के आते ही नदियों का पानी उतर गया और मार्ग का कीचड़ भी सूख गया। निधौतदानामल गंडभित्तिर्वन्यः सरितो गज उन्ममज्ज। 5/43 एक जंगली हाथी नर्मदा नदी के जल में से निकला, जल में स्नान के कारण उसके माथे के दोनों ओर का मद धुल गया था। पूर्वं तदुत्पीडितवारिराशिः सरित्प्रवाहस्तटमुत्ससर्प। 5/46 इससे नदी के जल में जो लहरें उठी थीं, वे उससे भी पहले नदी तट पर पहुँच चुकी थीं। तेनावरोध प्रमदा सखेन विगाह मानेन सरिद्वरां ताम्। 16/71
स्त्रियों के साथ सरयूनदी में जलक्रीड़ा करते समय कुश ऐसे लगते थे। 4. सलिला :-नदी।
नदीभिवान्तः सलिलां सरस्वतीं नृपः ससत्वां महिषीममन्यत। 3/9 राजा दिलीप गर्भिणी रानी को भीतर ही भीतर जल बहाने वाली सरस्वती नदी
के समान महत्त्वशाली समझते थे। 5. स्रवन्ती :-[स्रवत्+ङीप्] नदी, दरिया, सरिता।
वापीष्विव स्रवन्तीषु वनेषूपवनेष्विव। 17/64 नदियाँ उनके लिए बाबलियों जैसी घरेलू, वन भी उद्यान जैसे सुखकर हो गए।
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