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रघुवंश
4 शोक :- [ शुच्+घञ् ] रंज, दुःख, कष्ट, वेदना ।
निषाद विद्धाण्डजदर्शनोत्थः श्लोकत्वमापद्यत यस्य शोकः । 14/70 जिन वाल्मीकि ऋषि का शोक व्याध के हाथ से मारे हुए क्रौंच को देखकर श्लोक बनकर निकल पड़ा था ।
देह
1. अंग : - [ अङ्क + अच्] शरीर ।
तमाहितौत्सुक्यमदर्शनेन प्रजाः प्रजार्थव्रत कर्शितांगम् । 2/73
प्रजा उनके दर्शन के लिए तरस रही थी, पुत्र की उत्पत्ति के लिए, जो उन्होंने व्रत लिया था, . उससे वे कुछ दुबले हो गए थे ।
परामर्शन्हर्षजडेन पाणिना तदीयमंगं कुलिशव्रणांकितम् । 3/68
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राजा दिलीप ने उनकी बड़ी प्रशंसा की और जहाँ उनके शरीर में वज्र लगा था, वहाँ धीरे-धीरे सहलाने लगे।
2. काया :- [ चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि+घञ्, आदेः ककारः]
शरीर ।
कायेन वाचा मनसापि शश्वद्यत्संभृतं वासवधैर्यलोपि । 5/5
उन्होंने शरीर, मन और वचन तीनों प्रकार का जो कठिन तप करना प्रारंभ किया जिसे देखकर इंद्र भी घबरा उठे थे ।
स्पृशन्करेणानतपूर्वकायं संप्रस्थितो वाचमुवाचं कौत्सः । 5/32
सबड़े प्रसन्न थे और उन्होंने राजा के सिर पर हाथ धरते हुए कहा । रराज रक्षः कायस्य कंठच्छेदपरम्परा । 12 / 100
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रावण के शरीर से सिर कटकर गिरते हुए ऐसे अच्छे लगते थे ।
3. गात्र : - [ गै+ त्रन्, गातुरिदं वा, अण् ] शरीर ।
रजः कणैः खुरोद्धूतैः स्पृशद्भिर्गात्रमन्तिकात् । 1 /85
नंदिनी के आते समय उसके खुरों से उड़ी हुई धूल के शरीर पर लगने से । अभ्यभूयत वहानां चरतां गात्रशिंजितैः । 4/56
चलते समय घोड़ों के शरीर पर के कवच ऐसे ऊँचे स्वर से खनखना रहे थे । रोमांच लक्ष्येण सगात्रयष्टिं भित्वानिराक्रम दरालकेश्याः । 6/81 प्रेम के कारण उसे रोमांच हो आया, वह प्रेम छिपाने पर भी न छिप सका। मानों खड़े हुए रोगों के रूप में वह प्रेम, शरीर फोड़कर निकल आया हो ।