________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्पादकीय उपोद्घात
रामचरितमानस के शब्दों पर कार्य करते समय कालिदासीय शब्द-प्रयोगों पर बार-बार ध्यान जाता रहा। इसी क्रम में कालिदास की काव्यकृतियों का पारायण होता चला गया। मुझे कालिदास के शब्द-प्रयोगों ने कुछ ऐसा चमत्कृत किया कि पढ़ते-पढ़ते मैंने "कालिदास का भाषीय औदात्य" शीर्षक से एक बृहद् निबन्ध लिख डाला। इस निबन्ध को पढ़कर कुछ सुधी मित्रों ने कालिदास के पूरे साहित्य पर कार्य करने का सद्परामर्श दिया। यही इस कार्य का बीजभाव है। ___अर्थ की दृष्टि से समानता रखने वाले शब्दों को पर्याय कहते हैं, फिर भी प्रत्येक शब्द की अर्थच्छाया अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए सब के हृदय में मद (आनन्द) उत्पन्न करने के कारण कामदेव 'मदन' कहलाता है। वैसे ही सब प्राणियों के दर्प के दलने के कारण वह कंदर्प की संज्ञा पाता है। अंग से रहित होने के कारण वही 'अनंग', प्राणियों के मन में उत्पन्न होने से 'मनसिज' तथा फूलों के धनुष से युक्त होने से 'पुष्पधन्वा' कहलाता है। इन्हीं अर्थच्छायाओं के सूक्ष्मान्तर से रचना में अर्थविच्छित्ति आती है। इन्हीं अर्थविच्छित्तियों का संधान प्रस्तुत कार्य का मुख्य प्रयोजन है।
यह कार्य कुल दो भागों में प्ररोचित है। जिसके प्रथम भाग में 'रघुवंश' के पर्यायों को अकारादि क्रम से प्रस्तुत किया गया है जबकि द्वितीय भाग के तीन खण्डों में से प्रथम में 'कुमारसम्भव', द्वितीय में 'मेघदूत' तथा तृतीय खण्ड में 'ऋतुसंहार' के पर्यायों का संकलन किया गया है। ___इस कोश के प्रथम भाग में रघुवंश के कुल 291 शब्दों के 1343 पर्यायों का एवं द्वितीय भाग के प्रथम खण्ड में 'कुमारसम्भवम्' के 151 शब्दों के कुल 660 पर्यायों का संदर्भ सहित विवेचन किया गया है। इसी प्रकार द्वितीय भाग के द्वितीय खण्ड में 'मेघदूतम्' के 107 शब्दों के 371 पर्यायों एवं तृतीय खण्ड में 'ऋतुसंहारम्' के 85 शब्दों के 352 पर्यायों का अकारादि क्रम से सन्दर्भ एवं उद्धरण सहित संग्रह किया गया है। इस प्रकार कालिदास के सम्पूर्ण काव्य-साहित्य में कुल 634 शब्दों के 2726 पर्यायों का प्रयोग हुआ है।
For Private And Personal Use Only