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जैन तास्विक प्रोपदेशिक व दार्शनिक :--
"
3 तत्वों का विवेचन मा.
तात्विक प्रोपदेशिक
जैन तात्विक
71
"
11
31
"
11
11
श्रौपदेशिक
जन ध्यान योग
6
श्रौपदेशिक
"
17
"
" कथासह
"1
12
37
1:
श्रावकाचार
प्रा.सं.
11
जैन संद्धांतिक
श्रोपदेशिक कथासह प्रा.सं.
सामान्य श्लोक
सं मा
श्रीपदेशिक पद
प्रा.मा.
C
प्रा.स.
7
प्रा मा.
सं.
प्रा.मा.
मा.
सं.
मा.
सं.
"
प्रा.सं.
प्रा.सं.
सं.
=
3
4
23
61
16
7
9
34
15
7
8
12*
गुटका
5
6
40
63
3
30*
3
158
237
34
183
8
189
8 A
www.kobatirth.org
23 × 12 × 15 × 48
22 × 15 × 14 × 26
27 x 13 x 16 x 49
25 x 13 × 13 x 54
26 × 11 x 10 x 42
26 × 11 × 5 × 35
26x11 × 4 x 41
23 x 10 x 13 x 43
28 x 10 x 13 x 32
25 x 12 x 12 x 36
26 x 11 x 13 x 44
15 × 10 × 12 × 20
25 × 10 × 20 × 50
26 11 x 17 x 52
अपूर्ण
संपूर्ण 67 दोहे
"1
11
21
29
11
11
11
11
13
93
17
71 गाथाएं
ग्रं. 2700
62 गाथा का
61 गाथा का
59
3
31 × 11 × 5 × 36
26 × 11 × 6 x 44
23 × 20 × 21 × 38 | संपूर 33 श्लोक
26 × 12 × 13 × 38
प्रतिपूर्ण
27 × 1 2 × 13 × 3 8
संपूर्ण
30 x 13 x 15 x 56
9
तीन अधिकार
25
8
"1
11
59 गाथा
अधिकार
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"
20 परिच्छेद
13
11
afagni
संपूर्ण
अपूर्ण 11 से 57
(अंत) तक .. 8700
27 x 13 x 15 x 44
संपूर्ण ग्रंथाग्र 10000
लगभग
26 × 12 × 15 × 5 1
|पूर्ण ( 17वें प्र तक ) 78 गाथा 68 काव्य कथा तक संपूर्ण 145 गाथा की,
28 × 13 × 15 × 60
ग्रं. 9682 टक स्फुट पन्ने (12
27 × 11 × 17 x 75
व्रतवाले)
27 × 12 × 11 × 31 | अपूर्ण चौथे अध्याय से
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10
20वीं
1738
1954
1672
1726
18वीं
18वीं X
क्ष ेममूर्ति
1877
19वीं जैसलमेर उम्मेदविज
* 19वीं
19वीं
1544
[ 123
11
विद्याविजय द्वारा संशोधित
18at
19at
16at
1899 उदयपुर
उदयचद
20वीं
18वीं
19वीं
18at
19वीं
1643x ज्ञानसुंदर 1954, नागौर बृहत् वृति है । प्रशस्ति हेमकलश वाचक देवकृष्ण द्वारा सशोषित
17वीं
19वीं
मूल ग्रंथाग्र 335
की स्वोपज्ञ ?
लघवृत्ति है।