________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ ६ ] उ०-नहीं, जब तक सोना-चान्दी खानमें रहता है । तबतक उसमें जीव रहता है, खानसे निकालने पर गलाने से जीव नष्ट हो जाता है। इस तरह पत्थरों को खानसे निकालने तथा मिहियों को पैरों तले कुचलने आदि से भी जीव नष्ट होते हैं।
"अब जलकाय के जीवों के भेद कहते हैं।" भोमंतरिक्ख-मुदगं,
ओसाहिम-करग-हरितणू-महिआ। हुंतिघणोदहिमाई,
भेआ णेगा य आउस्स ॥ ५॥ (भोम) भूमिका-का, तालाब आदिका जल, (अंतरिक्ख मुदगं) अन्तरिक्षका-आकाश का जल (ोसा) प्रोस, (हिम) बर्फ, (करग)ोले, (हरितण) हरित वनस्पति के खेतमें बोये हुए गेहूँ, जव आदि के-बालोंपर जो पानी के बूद होते हैं, वे,(महिया) महिमा-छोटे छोटे जलके कण जो बादलोंसे गिरते हैं, (घणोदहिमाई) घनोदधि आदि, (अाउस्स) अप. काय जीव के, (भेश्रा णेगा) अनेक भेद, (हुँति) होते हैं ॥॥ __ भावार्थ-- कूमा, तालाब आदिका पानी, वर्षा का पानी प्रोस का पानी, वर्फ का पानी, प्रोलों का पानी, खेतकी वनस्पतिके ऊपर के जलीय कण,
For Private And Personal Use Only