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[ ५४ ] पाना मुश्किल ह और उचित सामग्री-मनुष्यजन्म और सम्यक्त्व-सच्ची श्रद्धा-भी प्राप्त हुई है इसलिये हे भव्य जीवो! प्रमाद न करके, महा पुरुषों ने जिस धर्म का सेवन किया है उसका तुम भी सेवन करो; क्योंकि बिना धर्म की सेवा किये तुम जन्म-मरण के जञ्जाल से नहीं छूट सकोगे। "इस प्रन्थ में जो कुछ जीवों के स्वरूप के विषय में कहा गया है
वह सिद्धान्त के अनुसार है" एसो जीववियारो, संखेवरुईण जाणणाहे । संखित्तो उद्धरिओ,रुद्दाओ सुयसमुद्दामो॥५१॥
(संखेवरईण ) संपरुचियों के-अल्पमतिओं के ( जाणणा हेउं ) जानने के लिये । ( रुद्दाओ) रुद्र-अतिविस्तृत (सुयसमुद्दाश्रो ) श्रुतसमुद्र से ( एसो) यह (जीववियारो) जीवविचार (संखित्तो) संप से (उद्धरित्रो) निकाला गया ॥५१॥ ___ भावार्थ-सिद्धान्तों में जीवों के भेद आदि विस्तार से कहे गये हैं इसलिये अल्प बद्धि वाले लाभ नहीं उठा सकते; उनके जानने के लिये संक्षेप में यह "जीवविचार" सिद्धान्त के अनुसार बनाया गया है, इसके बनाने में अपनी कल्पना को स्थान नहीं दिया गया।
जीवविचार समाप्त।
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