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[ २९ ]
ग्रह, नक्षत्र और तारा, इन पांच ज्योतिष्क देवोंमें, चंद्र और सूर्य इन दोनोंकी इन्द्र पदवी है अर्थात् ये दोनों, ज्योतिष्कों में इंद्र कहलाते हैं, दूसरों को इन्द्र पदवी नहीं है, मेरुके समतल मूलसे ऊपर सात सौ नब्बे योजनकी ऊंचाई पर ताराओं के विमान हैं, वहां से दस योजनकी ऊंचाई पर सूर्यका विमान है, वहां से अस्सी योजनकी ऊंचाई पर चंद्र का विमान है, वहांसे चार योजनकी ऊंचाईपर नक्षत्रोंके विमान हैं. वहां से सोलह योजनपर दूसरे दूसरे ग्रहों के विमान हैं, तात्पर्य यह है कि मेरुके मूलकी सपाट भूमि से सातसौ नब्बे योजनके ऊपर एकसौ दस योजनों में ज्योतिष्क देव रहते हैं। अब वैमानिक देवों के स्थान कहते हैं; - सम्पूर्ण लोक-जिसे त्रिभुवन कहते हैं उसका आकार पुरुष के समान है और उसकी लम्बाई चौदह राजू है, नीचेकी सात राजुओं में सात नरक हैं। नाभिकी जगह - मध्य में मनुष्य लोक है। मेरु की। सपाट भमि से सात सौ नब्बे योजन पर ज्योतिष्क देवोंके विमान हैं, वहां से लगभग एक राजू ऊपर दक्षिण दिशा में सौधर्म देवलोक और उत्तर दिशा में ईशान देवलोक परस्पर जुड़े हुए हैं, वहांसे कुछ दूर ऊपर, दक्षिण में तृतीय देवलोक केनत्कुमार और उत्तर में चौधा देवलोक माहेन्द्र, एक दूसरेसे लगे हुए हैं, वहांसे ऊपर पांचवां ब्रह्मलोक, छठा लांतक, सातवां शुक्र, आठवां सहस्रार ये चार देवलोक,
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