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[ १४ ]
"पृथ्वी काय आदि जीवों के विषय में कुछ विशेष कहते हैं" पत्तेयं तरुमोत्तुं, पंचवि पुढवाइणो सयललौए । सुहुमा हति नियमा, अंतमुहुत्ताउ हिस्सा | १४ (पत्तेयं तरु) प्रत्येक वनस्पतिकायको (मोत्त) छोड़कर, (पंचवि) पांचों ही (बुढवाइणो) पृथ्वीकाय आदि, (सुमा) सूक्ष्म-स्थावर (सयल लाए) सम्पूर्ण लोक में (हवांत) विद्यमान हैं -रहते हैं और वे (नियमा) नियमसे (अन्तमुहुत्ताउ) अन्तर्मुहूर्त आयुष्यवाले होते हैं, तथा (हिस्सा) अदृश्य हैं- आंख से देखने में नहीं आते ॥ १४ ॥
भावार्थ- प्रत्येक वनस्पतिकायको छोड़कर पृथ्वीकाय आदि पांचों ही सूक्ष्म-स्थावर सम्पूर्ण लोक में भरे पड़े हैं। उनकी आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है तथा वे इतने छोटे हैं कि आंख उन्हें नहीं देख सकती । प्र० अन्तर्मुहूर्त किसे कहते हैं ?
उ०- नव समय से लेकर, एक समय कम, दो घड़ी जिनना काल अन्तर्मुहूर्त कहलाता है । नव समयों का अन्तर्मुहूर्त सबसे छोटा अर्थात् जघन्य है, और दो घड़ी में एक समय कम हो, तो वह अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट है, बोचके कालमें नव समय से आगे एक एक समय बढ़ाते जांय तो, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक असंख्य अन्तर्मुहूर्त होते हैं।
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