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दशहजारकुंटुंबसंगनृपकू, श्रावगधर्म धरावतहेरे ॥ चा० ३॥ दयामूल आज्ञाजिनवरकी बारहव्रत उचरावतहेरे ॥ चा० ॥ एसे च्यारराजसमकितधर, खरतरसंघवणावतहेरे ॥चा० ४॥ कुष्टजलंधर क्षयभगंदर, केइयक लोकजीवावतहेरे' ॥चा० ५॥ ब्राह्मणक्षत्रिय अरुमाहेश्वर, ओसवंस पसरावतहेरे । चा०॥ तीसहजारएकलख श्रावक, महिमा अधिकरचावतहेरे ॥ चा० ६॥ इत्यादि अधिकारजाणना" औरचंदेरीकेराजाखरहत्थसिंहराठोड इसकुं चंद्रपुरपट्टनवि कहेतेहैं, श्रीलोद्रवपुरपट्टनके चंद्रवंशी राजपूत सागररावलकेसंतानसिंधदेशमें एकहजार ग्रामोंके भाटीराजपूत राजाअभयसिंहको तथा धारानगरीकाराजापृथ्वीधरपँवारराजपूतके संतानीय जोबन और सचूनामक कुमारोंकों, सोलगराचौहान राजपूत राजारतनसिंहके संतानीयधनपालकों, पालीनगरमें राजपूतजातिककाकू और पाताकनामक विशेषमहर्द्धिकदोभाईयोंको, पूगलकाराजा भाटीराजपूत सोनपाल तथा उसका पुत्रकैलणदेनामकाथा उसको, मुलताननगरमें मुंधडामहेश्वरी हाथीशाह राजाकादेशदीवानथा उसको प्रतिबोधके श्रावककिया आनंदपुरपट्टन विगेरे ४ महाराजाओंको दशदशहजारके परिवारसहित श्रावकधर्मधराणेसें, इत्यादि अनेक बडेबडे राजपूतमहर्द्धिक, राजा महाराजा दीवान वगेरेको प्रतिबोधणेसें खरतरविरुदधारक युगप्रधान श्रीजिनदत्तमरिजीका राजगछभया, और महाराजाविगेरेका विशेषस्वरूपगोत्राधिकारमें आगे दियाजावेगा, इसके सिवाय क्षत्रियवैश्य ब्रामण शूद्र ४ वर्णवालोंको प्रतिबोधके घरकुंटुंबकी संख्या
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