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भावमंगलमभिधेयादेव श्रोतजनप्रवृत्तये प्रतिपादयितुं प्रथममिमां गाथामाह, गुणमणिरोहणगिरिणो, रिसहजिणंदस्स पढममुणिवइणो, सिरिउसभसेण गणहारिणो णहे पणिवयामिपए ॥ ॥१॥ अथकोटिकगणपट्टावल्यां दर्शितचरित्रलेशं यथा-॥४४ मा ॥ श्रीजिनवल्लभसरिजीके पाटऊपर, श्रीजिनदत्तमरिः हूए । सो वडादादाजीके नामसे सर्व लोकमें प्रसिद्ध भए।इनोंका किंचिद अधिकारलिखताहुं ॥ धवलकनामनगरमें, हुंबडगोत्रियवाछिगनामें एकमंत्री हुवा, जिसके वाहडदेवी नामें स्त्री, उसकी कूखसें चंद्रस्वमकरके सूचित संवत ११३२ में जन्महुआ, तब मातापितानें दशदिनकाबहुतउत्सवकरके सर्वस्वजनोंकेसामने सोमचंद्र ऐसानामदिया, शुभलक्षणोंकरकेयुक्त और श्रेष्ठचिन्होंसे सूचित कराहै अपणापुन्यप्राग्भारजिसने, ऐसा पांचधायमायकरके पालीजता जब पांचवरसकाभया, तब मातापिताने शुभदिनमे पंडितकेपास पढानेकों बैठाया, बुद्धिकेबलसें थोडा दिनोंमें बहोतसी कलाविद्याशीखी, आठबरसका हुयेपीछे गुरुमहाराजके पास उपदेशसुनके वैराग्यकोंप्राप्तभया, तब अपनामातापिताकी आग्यालेके संवत् ११४१ के सालमें उपाध्यायश्रीधर्मदेवगणिजीके पास दीक्षाग्रहणकरी, अर्थात् जैनसाधुभया, पीछे गुरूके पास संपूर्णशास्त्रोंकाअभ्यासकरनेलगा, इस अवसरमें गुरुमहाराज सारंगपुरकेविषे श्रीकुंअरपालउपाध्यायकों अणशणदिराया, आराधनाकराई, सो श्रीकुंवरपालउपाध्याय आयुपूर्णकरदेवगतिकों प्राप्तभया, तब ग्यानकेउपयोगसे पूर्वभवकासंबंध जाणके गुरूके
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