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द्धउ, सुगुरुजिणेसरसूरि नियमि जिणचंदु सुसंयमि, अभयदेवु सबंगु नाणि जिणवल्लहु आगमि, जिणदत्तसूरि हिउ पट्टि तहि जिण उज्जोइउ, जिणवयणु, सावइहिं परिक्खिवि परिवरिउ मुल्लि महग्घउजिमरयणु ॥ ४ ॥ धणुहर धयवडधरय सारि सिंगार सुसज्जिय, सोहग्गिण गुडगुडिय पंच वरपडिम निमज्जिय, तियड अ तेअ अग्गलिय पिम्मपडिकारनिरुत्तिय । रइरणरह सुचलिय गरुयमाणिण मइ अन्निय । करिकडसडमुणि महिवइहिं रहिय रूवय संपुन्नभय । जिणदत्तसूरिसीहह भयणमयण हकर घियड विहडि गय ॥ ५ ॥ तवतलप्फभीसणह धम्मधीरिमसूविसुविसालह । संजमसिरभासुरह । दुसहदवदाढकरालह । नाणनयणदारुणह नियमनि सनहर समिद्धह । कम्मकोवनिहुरह । विमलपहपुछ पसिद्धह । उपसमणउपरधरदुबिसह. गुणगुंजारवजीहह । जिणदत्तसूरि अनुसरह पयपावकरडिघडसीहह ॥ ६॥ जरजलवहलरउदु लोहलहरिहिं गजंतउ मोहमच्छ उच्छलिउ । कोवकल्लोल वहंतउ मयमयरिहिं परिवरिउ । वंचबहुवेलदुसंचरु, गंथगरुय गंभीरु, असुहआवत्तभयंकरु, संसारसमुहु जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिविदरियइ । जिणदत्तसूरि उवएसुसुणितपरतरंडइ सुतरियइ ॥७॥ सावयकिवि कोयलिय केवि खरतरिय पसिद्धिय, ठाइ ठाइ लक्खियहिं मूढनियवित्ति विरुद्धिय । दरहिं न किंपि परत्त वेवि सुपरप्परु जुन्झहि, सुगुरु कुगुरुमणि मुणिवि न किं वि पहतरु बुज्झहिं । जिणदत्तसूरि जिन नमहि पयपउम सञ्चुनियमणि वहाहि । संसारउयहि दुत्तरि पडिय जिनहु तरंडइ चडितरहि ॥८॥ तव संयमसय नियम धम्मकम्मिण वावरियउ विसमछंदलक्खणिण सत्थ अत्थत्थ विसालह, जिणवल्लभ गुरु भत्ति वंतु पयडउ कलिकालह् ।
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