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. ५२९ नगरमें एकदा धर्मसागरपरपक्षिने लोकोंके आगै ऐसा कहाकि श्रीअभयदेव सूरिजी नवांगवृत्तिकार श्रीखरतरगच्छमें नहिं हुवा तब गुरु पाटण पधारके चोरासी गच्छीय सर्व आचार्य उपाध्यायसाधुवगेरेके समक्ष परपक्षियोंका पराजयकीया तब साने नवांगवृत्तिकारक जयतिहुअण पंचाशकादि प्रकरण को श्रीअभयदेव सरिजीखरतर गच्छमें भरा ऐसा अंगीकार किया सवोने सहियाकरी और धर्मसागरके बनाये भये कुमतिकुद्दालादिग्रंथ अशुद्ध ठहराये, और श्रीफलोधिपार्श्वनाथजीके मंदिरमें परपक्षियोने ( तपगच्छीयोने) दरवाजेपर ताला दिया तब आचार्यश्रीने मंत्रबलसे ताला उघाड दियाथा वाद एकदा मंत्री कर्मचंदके मुखसे श्रीगुरु माहाराजकी प्रशंसा और महत्वपणा सुनके पातसाहने दर्शन करणेकों बोलाये वीनति कराइ तव श्रीगुरुवर्य लाहोरनगर पधारे अकब्बरको प्रतिबोधके सबदेशोंमें फरमाण भेजाके पर्युषणादि अट्टाहि योंमे अमारि पालनकराया तथा खंभाततीर्थके पास समुद्रमे १ वरस पर्यंत मच्छोंकों अभय दान दिराया, और श्रीगुरु माहाराजका अतिशय देखके पातसाहने युगप्रधान पद दिया, याने इसवक्त जैनमें ऐसे आचार्ययुगप्रधान और नहिंसंभवे इसलिये यहयुगप्रधानहैइति उसी अवसरमेंहि श्रीअकब्बर पादसाहके आग्रहसैं श्रीगुरुने श्रीजिनसिंह सूरिजीकुं अपणे हाथसै आचार्यपद दीया तब अत्यंत प्रमुदित होके मंत्री कर्मचंदने बहोत द्रव्यखरचके महोत्सव करा उसमे नवगाव नवहाथी पांचसै घोडा ५०० और भूषण वस्त्रादि याचकोकों दिये इस प्रकारसे सवाक्रोड द्रव्य खरचके श्रीखरतर
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