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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ करी, गुरुमहाराज तिहां क्रियोद्धारकरके सुविहित साधुमार्ग अंगीकारकरा, अपणेंसमान साध्वाचार पालनेवाले गुणवान १६ साधुवोंके साथ विहारकरतेहुवे, ठिकाणे ठिकाणे प्रतिमा उत्थापक मतकाखंडनकरतेहुवे, अपणी सिद्धान्तीय समाचारीकों दृढकरते. हूवे अस्खलितविहार सर्वत्र करतेहूवे, अखंडित आज्ञासहित अनुक्रमसें विचरतेहूवे गुर्जरदेशमें गए, तिहां अहमदाबाद नगरमें, मतिराकाकडी खडबुजादिक फलका व्यापारकरके आजीवका कारताहूवा, मिथ्याधर्मनिष्ठ पोरवाल कुलोत्पन्न सिवाजी ( सदा) सोमजीनामें दो भाईयोंके एक नवीन वस्त्र ऊपर वासक्षेपकरा और कहा फलादि व्यापार वस्तु ऊपर इसवस्त्रको ढकना, इसी तरेकरा, अनर्गलऋद्धिसमृद्धिवाले भये, विशेष गुरुमुखसें जाणना, वादमें प्रतिबोधदेके सर्व कुटुंब सहितमहर्द्धिक श्रावककिये, पोरवालज्ञातीय महाधनवंत श्रावकभये, पोरवालवंश प्रतिबोधक उपकेशगछीय खयंप्रभसूरि वादमें यशोभद्रसूरिवगेरा बहुतसें सुविहित खरतराचार्योंने पोरवालवंशकीवृद्धि करीहै, आखरसंवतसोलेसें तक पोरवालवनायेगयेहैं, इसलिये पोरवाल एक गछके नहिंहै, उपकेशगच्छ, खरतरतपा आंचलादि अनेक समाचारीबालेहैं, इसलिये प्रस्तुत पोरवालजातिय श्रावक खरतरसमाचारीकारक-भये, फेरजिणोंने संघनिकालने पूर्वक श्रीसेर्बुजयकी यात्राकरके सर्वदेशोंके जैन श्रावकोंको एकैकमहोर, एकैक थालकी लहांणी दीनी इत्यादि बहुतसा विशेषचरित्रहै, सोछपाहूवागणधर सार्धशतकान्तर गत श्रीचारित्रसिंहगणि उद्धृत प्रकरण वृत्तिके भाषान्तरसें जाणना तथा पाटण For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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