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॥ अथाष्टमः सर्गः ॥ नमोऽस्तु भगवते श्रीपार्श्वनाथाय समस्त विनव्यूहान्धकारहरणतर्णये नमोऽस्तु भगवते श्रीवर्द्धमानाय स्पर्द्धमानायकर्मणा । तज्जयावाप्तमोक्षाय, सचिदानंदरूपाय श्रीसिद्धाय नमः॥ आकार्यगुर्जरदिशोवरलाभपुया श्रीसाहिना गुरुगुणानिपुणानिरीक्ष । सन्मानिता युगवरप्रवरावदाता जाता वशीकृतसुरा जिनचन्द्रपूज्याः ॥९॥ अथ तत्पट्टे ६१ मायुगप्रधानपदभृत्, अकबर असुरस्त्राणप्रतिबोधक, चतुर्थदादासाहेब नाम प्रसिद्धिभाक्, श्रीमजिनचन्द्रसूरिजी हुए, तिणों का संक्षिप्त चरित्रलेश इस माफकहै, तिके वडली गामवासी रीहड गोत्रीय, साहश्रीवंतपिता, सिरियादेवीमाता, संवत १५९५ का जन्म, संवत् १६०४ दीक्षा, संवत् १६१२ भादवासुदि ९ नवमीकेदिन जेशलमेर नगरमें राउल मालदेवकारित नंदीमहोछव करके सरिपदमे प्राप्तभए, तिसहीज रात्रिके विषे श्रीजिनमाणिक्य सूरिजी प्रगटहोके सेवाकी पोथीमें रहा आम्नायसहित सूरिमंत्रपत्र श्रीजिन चन्द्र सूरिजीकों दिया, फेरसंयम तपादिककेविषे विशेष उद्यम करना इत्यादि कहकर अदृश्यभये, फेरश्रीजिन चन्द्रमूरिजी अत्यंत संवेगरंगमें वासितचित्तभयेथके, गच्छकेविषे शिथिलपणादेखके, सर्व परिग्रहका त्याग करके, वछावत मंत्रिसंग्रामसिंहकापुत्र श्रीकर्मचन्द्र मंत्रिके आग्रहकरके, वीकानेर नगरमें गए, तिहां प्राचीन उ. पाश्रयकों यतिलोकोंकरके रोकाभयादेखके मंत्रीश्वरनें अपणी अश्वशाला महाराजको उतरणेंकों दीवी, ओरभी बहुत गुरुकी भक्ति
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