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१९७३ का चोमासाभी श्रीसंघके विशेष आग्रहसें लालबाग ममाईमें करा, वादमें ममाईसें सुविहित विहारसैं कौंकण लाट गुर्जर मालव मेदपाट गोडादि देशोंमे विचरतेभए, बुहारी सुरत बडोदा रतलाम ईन्दौर मनसोर उदयपुर इत्यादि नगरोंमें चतुर्मास करके श्रीवीरशासनोन्नति करते हुवे क्रमसें मरुधरादि देशोंमें सुखसे विचरतें हैं, इनोंका विशेष अधिकार बृहत्चरित्रकी प्रस्तावनाकी ८ मी पृष्टसें जाणना ॥५६॥ ॥५७मा श्रीजिनभद्रसूरिजीके पाटऊपर श्रीजिनचन्द्रसूरिजीभए, तिके जैशलमेरवासी, चम्मगोत्रीय साहवछराज पिता वाल्हादेवी माता, संवत् १४४७ जन्म, संवत् १४९२ दीक्षा, संवत् १५१४ वैशाखवदि २ द्वितीयाके दिन कुंभलमेरु रहेवासी कूकड चोपडागोत्रीय साह समरसिंहनें नंदीमहोछव किया, श्रीजिनकीर्तिरत्नसरिजीने पद स्थापना करी, बादमें विचरतेथके, अर्बुदाचल ऊपर नवफणापार्श्वनाथजीकी प्रतिष्ठाकारक, श्रीधमरत्नसूरिजी, गुणरत्नसूरिजी प्रमुख अनेक मंडलाचार्य पदस्थापक श्रीजिनचंद्रसूरिजी विक्रम संवत् १५३० जेशलमेर नगरमें देवलोकको प्राप्तभए, ॥ ५७ ॥ इनोंके चारेवि संवत् १५०८ अहमदाबादमें लोंके लेखकनें जिनप्रतिमा उत्थापनकरी, वहलोका जिनप्रतिमा उत्थापनादि अनेक उत्सूत्रप्ररूपणा कारक, और गुरुपरंपरा तथा परंपरागतवेष, और परंपरागत शुद्धदेशसर्व-रूप-आचरणा, परंपरागत शुद्ध सर्वसिद्धान्ताधिकारादिकका त्यागकर सर्व सिद्धान्तोंका अनादरकर सर्वसिद्धान्तोंकी पंचागीका त्यागकर, मनमानेसूत्रोंको प्रमाणकर, श्रीपार्श्वचंद्रसे सूत्रोंका
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