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भावगम्भित उदाहरण तरीके एकगुरुगुणस्तुतिदीजावे है, तथाहि श्रीजिनकीरतिरतनसरि बंदीये, मूलमहेवे थान, संयमीयां सिरसेहरो शंखवाल कुलभांण, ॥१॥ श्री०कीर, संवत् चवदे ऊपरे, उगुणपचा सैजास, जनमथयोदीपाघरे, देवलदे उल्लास, श्री० की० ॥॥२॥ डेल्ह कुंमर हिवनेमज्युं, मुकी निजघरवास, तेसढे संयमलीयो, श्री० जिनवर्द्धनररिपास, ॥३॥ श्री० की०॥ वाचक पदवीसित्तरे, असीये पाठकसार, आचारिज सत्ताणमें जेसलमेर मझार, श्रीजिनकी०॥, ॥४॥ सुरनरकिन्नरकामिनी, गुणगावे सुविसाल, साधुगुणे करिसोभता, हारविचे जिमलाल,श्रीजिनकी०॥५॥ पगला अरबुदगिरिभला, योधपुरे जयकार, राजनगर राजेसदा, धुंभ सकल सुखकार, श्रीजिनकी०, ॥६॥अमीयभरे भललोयणे, तुं मुझदेदीदार, पाठक ललित कीरतिकहै, दिन प्रति जय जयकार, श्रीजिनकीरतिरतनसूरिवंदीये, ॥ ७ ॥ इति श्रीजिनकीरतिरतनसूरिस्तुति इत्यादि उत्पत्ति भक्तिभाव गुणवरणनादि नवनवभावगभित नवनवरागादियुक्त अनेक कविरचित अनेक स्तवनादिक है, सो अलगहि संग्रहकरके सज्जनोंके करकमलोंमे सादर उपस्थित करदीया जावेगा ५७ तदनंतर तत्पट्टपरंपरायां क्रमात् श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिजी भए है तिके गामचामूकेवासी, वाँफणागोत्रीय, साहमेघरथ पिता, अमरादेवी माता, संवत् १९१३ का जन्म, संवत् १९३६ में दीक्षा, संवत् १९७२ पोषशुदि १५ के दिन हिन्दनिवासी समस्तजैनसंघने नंदीमहोत्सवादि आचार्यपदोत्सव किया, श्रीजिनचारित्रसरिजीनें सरिमंत्र देके, पदस्थापना करी, मोहमयी पचनमें, फेर
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